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________________ आचा० ॥६०३॥ ते साधु प्रमादना विपाक विगेरेनुं अथवा अतीत अनागत वर्त्तमानना कर्मविपाकनुं प्रभूत ( घणुं रहस्य) देखवाना स्वभाववालो होवाथी प्रभूतदर्शी कहेवाय छे, पण वर्त्तमाननो स्वार्थ देखीने कांइ पण न करें, तथा सत्व [ जीव समूह ] नुं रक्षण करवाना उपायमां घणुं ज्ञान धरावे, अथवा संसार भ्रमण तथा मोक्ष मेळववानां कारण घणी रीते जाणे, माटे 'प्रभूत परिज्ञानी' कहेवाय छे, अर्थात् संसारनुं जेवुं स्वरूप होय तेवुं वधा जीवोने बतावे छे, 'किंच'- बळी कपायनो उदय न करे, तेथी अथवा इन्द्रिय अने मनने कवजामां राखवाथी 'उपशांत' छे, तथा पांच समितिवडे अथवा सम्यग् रीते मोक्षमार्ग तरफ चालवाथी समित छे. तथा ज्ञान विगेरेथी सहित छे, तथा सदा यत्न करवाथी सदायत छे, आ प्रमाणे अप्रमत्त बनीने गुरु सेवामां रहतो, पोताना प्रमादथी पूर्वे | करेलां अशुभ कृत्योनो अंत करे छे, ते साधु स्त्री विगेरेना अनुकूल परिषद आवतां शुं करे, ते कहे छे. 'दृष्ट्वा ' स्त्रीओने पोताना आत्माने उपसर्ग करवाने आवती देखीने विचारे के, हुं सम्यग् दृष्टि छं, तथा पंच महाव्रतनो भार में लीधो ले, शरद ऋतुना चंद्र समान निर्मळ कुलमां में जन्म लीधो छे. हुं अकार्य त्यजवा माटेज तैयार थयो छु, ते स्त्रीसमूहने देखी विचारे, के आ स्त्रीओथी मारे शुं प्रयोजन छे ? में जीववानी आशा त्यग करी छे, आ लोकनुं सुख सर्वथा छोड्छु छे, तेथी ते स्त्री मने भुं उपसर्ग करवानी छे ? मारुं मन केम चलायमान करशे ? अथवा विषयोनुं सुख दुःख रूपे परिणमवाथी मने आ स्त्रीओ शुं सुख आपवानी छे ? अथवा पुत्र कलत्र विगेरे मने काळ झडपशे, अथवा रोगो पीडशे, त्यारे ते केवीरीते बचावी शकशे ? अथवा आ प्रमाणे स्त्रीओना स्वभावने चिंतवे ते सूत्रकारण बतावे छे. के आ स्त्रीसमूह रमणता करावे माटे आराम छे, तथा परम आराम होवाथी परमाराम छे, तेनुं सुख देखाडनारी स्त्री तत्व जाणनार ज्ञानी साधुने पण तेनाहास विलास उपांग तथा आंखना कटाक्ष देखडवा विगेरे विवोकवडे ते मुंझवे छे, भा लोकमां सूत्रम् ||६०३॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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