SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचा० ॥५९१॥ %A5%-55575 गामाणुगामं दूइजमाणस्स दुजायं दुप्परकंतं भवइ, अवियत्तस्स भिक्खुणो ॥ सू० १५६ ॥ सूत्रम् ४ बुद्धि विगेरे गुणोनो ग्रास करे (नाश करे) ते ग्राम छे. एक गामथी बीजे गाम जq ते ग्रामानुग्राम छे, दयमान ते विचरतो (धा5 तुना अनेकअर्थ छे) अर्थात् गाम गाम जे साधु तेने केवो दोष लागे ते कहे छे, दुष्ट गमन ते दुर्यात छे एटले एकलो विचरे तो निनीदय द २ ॥५९१॥ छे, तेने अनुकूल प्रतिकूल उपसर्गना कारणे कांतो अरणीक मुनि माफक ते गृहस्थ बनी जाय, तथा गतिमां भेद करवार्थी दुष्ट व्यंतरीनी जंघा छेदवा माफक (प्रतिकूल उपसमां चारित्रथी अश्रद्धावाळो) थाय, एटले एकलविहारीने गमन करतां उपरनो दोप लागे छे, तथादुष्ट पराक्रांत एटले एकलो साधु जे मकानमां रहे, तेने चारित्रभ्रष्ट थवानुं कारण थाय छे. जेमके स्थूलभद्रनी इर्पा करनार कोश्या दी वेश्याने घेर चोमासुं करवा जनार सिंह गुफावासी मुनिने पतित थवा वखत आव्यो, अथवा चतुषुमोपित भर्तृकाना घेर रहेला मुनिने पोते महासत्ववान होवाथी अक्षोभ होवा छतां पण दुष्पराक्रांत थयु, पण ए प्रमाणे वधाने दुर्यात दुष्पराक्रांत यतुं नथी, ते वता-15 ४ ववा विशेष खुलासो करे छे, के अव्यक्त (भिक्षा लेनार ते) भिक्षुने ते दोप लागे छे, ते अव्यक्त श्रुत अने वयथी थाय छे. ते वतावे छे, श्रुति अव्यक्त ते आचार प्रकल्प (ब्रहत् कल्प) अर्थथी न भण्यो होय, आ स्थविरकल्पीने आश्रयी छे, पण गच्छथी निकळेला जिनकल्पीने नवमा पूर्वनी त्रीजी वस्तु सुधीनं ज्ञान जोइए. अने वयथी अव्यक्त ते गच्छमा रहेलाने १६ वर्ष अने जिनकल्पीने ३० वर्षनी उमर जोइए, अहीं चोभंगी थाय छे. [१] जे श्रृत तथा वयथी अव्यक्त (अपूर्ण) छे तेने एकलविहार न कल्पे, कारण के तेने संयम तथा आत्मा (पोता )नील PAGESARIA
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy