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________________ आचा० ॥५३२॥ नाराओए कहेलुं छे. एटले आ उद्देशानी शरुआतथी सघळु तेमणे कां छे, प्रश्नः - शाथी तेओए ते कहेलुं छे ? उत्तरः- तेओ वधा सर्व विद छे, अने प्रावादिका एटले प्रकर्ष-मर्यादावढे बोलवाना आचारवाळा यथावस्थित पदार्थने बताववा तथा शरीर, मन संबंधी दुःखो वतावनारा अथवा तेनुं मूळ कर्मनुं स्वरुप वतावत्रामां कुशळ छे, के जे बताववाथी ते दूर करवा उपाय जाणनारा बनीने ते वधा उत्तम पुरुषोए ज्ञ परिज्ञा वडे जाणीने ते पाप छोडवा प्रत्याख्यान परिज्ञा वडे त्याग करेल छे. आ प्रमाणे कर्मबंध उदय सत्ताना बताववाथी ( वीजा पण ) ते प्रमाणे जाणीने सर्वे प्रकारे कुशळ वनीने तेओ प्रत्याख्यान परिज्ञावडे त्याग करे छे. अथवा मूळ उत्तर प्रकृतिना वधा भेदोने जाणीने एटले मूळ प्रकृति आठ, उत्तर प्रकृति १५८ छेतेने जाणी कर्मबंधनो त्याग करे छे अथवा प्रकृति स्थिति अनुभाव प्रदेश ए चार प्रकारोथी जाणीने त्यागे छे, अथवा बंध सत्ताना कारणो वडे कर्म स्वरूप जाणीने त्यागे छे. हवे ते उदयना प्रकारो वतावे छे. मूळ प्रकृतिना ऋण उदयस्थान छे, (१) आठ प्रकारनो, (२) सात प्रकारनो (३) चार प्रकारनो- एटले आठे प्रकृति साथै वेदे तो आठ प्रकारनो, अने ते काळथी अनादि अनंत अभव्योने आश्रयी छे. भव्य ने आश्रयी अनादि सांत तथा सादि सांत छे. अने मोहनीयनो उपशम अथवा क्षय होय, त्याग सात प्रकारनो । उदय छे, अने घातिकर्म चारे क्षय थतां वाकीना चार कर्मनो उदय छे, हवे उत्तर प्रकृतिना उदय स्थान कहे छे. ज्ञानावरणय अने अंतरायनुं पांचे प्रकारनं एक उदयस्थान छे. दर्शनावरणीयना वे छे दर्शन चतुष्कना उदयथी चार अने कोइ पण निद्रा साथ पांच | वेदनीय कर्मनुं सामान्यथी एक उदयस्थान साता के असातानुं छे. कारण के साता असाता विरोधी होवाथी बन्ने साथै उदयमां एक वखते न होइ, मोहनीयकर्मनां नव उदयस्थान छे, ते कहे छे दश, नव, आठ, सात, छ, पांच, चार, बे, एक. ए नवनी विगत - ते SAJ 1969-06 सूत्रम् | ॥ ५३२॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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