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________________ सूत्रम दशमां मिथ्यात अनंतानुबंधीथी संज्वलन सुधी ४ क्रोधनी चोकडी-ए प्रमाणे माननी चोकडी पण होय ते प्रमाणे कपटनी चोकडी आचा० होय, तथा लोभनी चोकडी होय एटले कोइ पण चोकडीनी चार होय, ते मळी पांच थइ. छटो कोइ पण एक वेद होय, हास्य रति | अथवा अरति शोकनुं जोडलं होय भय तथा जुगुप्सा मळी कुल १० थइ. उपरनी दशामांथी कोइ जीवने भय के जुगुप्सामा एक ॥५३३॥ॐन होय तो नव, अने बन्ने न होय तो आठ, अनंतानुबंधीनी एक दूर थतां ७ रही, मिथ्यात्वना अभावमा छ रही, अप्रत्याख्याननी उदयना अभावमां ५, प्रत्याख्यान आवरणना उदयना अभावे ४ हास्यरतिनुं जोडलं कोइ पण न होय तो २ अने वेदना अभावमां फक्त संज्वलन एकनो उदय रह्यो. आयुष्यनुं पण एकज उदयस्थान छे. कारणके चारमांनु कोइ पण एक होय, नाम कर्मना उदयनां १२ स्थान छे. २०, २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ९, ८ तेमां संसारमा रहेला सयोगी तेर गुणस्थान सुधीना है जीवोने नामकर्मना दश उदयस्थान छे. अने अयोगि गुणस्थानवाळाने छेवटना बेज छे. अहों वार ध्रुव उदयकर्म प्रकृति प्रथम वता वे छे. तेजस 'कार्मण' शरीर थे, वर्णगध रस स्पर्श ४ चोकहुं अगुरुलघु, एक स्थिर, एक अस्थिर, एक शुभ, एक अशुभ, एक निर्माण, कुल बार तेमां वीस तीर्थकर केवळी ज्यारे समुद्घात करे त्यारे कार्मण शरीरयोगीने होय छे. ते कहे छे, मनुष्यगति एक पचेन्द्रियजातिओ त्रस एक बादर एक पर्याप्त एक सुभग एक आदेय एक यशकीति एक त्रणे उपर कद्देली ध्रुवउदयनी बार मळी कुल २० थइ. अने एकवीसथी एकत्रीस सुधीनां उदयस्थानो जीव गुणस्थानना भेदथी अनेक भेदवाळां होय छे. ते ग्रंथ वधी जवाना 18 भयथी बधा अहीं कहेता नथी, पण जाणवा माटे एकेक कहे छे. प्रथम एकवीसनो एक कहे छे, गति एक, जाति आनुपूर्वी एक त्रस एक बादर एक पर्याप्त अथवा अपर्याप्त एक कोइ एक सुभग एक अथवा दुर्भग आदेय अथवा एक अनादेय यशकीर्ति अथवा -4- 2 GREAavac 8THS.CO
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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