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________________ आचा० ॥५३१॥ पछी जो, एटले विवेकवाळी बुद्धिथी तेने तुं धारण कर. प्रश्नः - क्या पुरुषो वधां कर्मोंने क्षय करे छे ! उत्तरः- ते कहे छे, 'नरे' इत्यादि माणसोज संपूर्ण कर्मक्षय करवाने समर्थ छे, पण बीजी गतिवाळा नहि. तेमां पण वधां मनुष्यो मोक्षमां जनारा नथी; पण जेओए अर्चाते, शरीरना संस्कारो ( शोभानो ) त्याग करवाथी जेमनुं शरीर मरण जेवुं छे अर्थात् जेमणे शरीरनो मोह | मुकी तेने पुष्ट करयुं; के शोभाव ए सघळं त्याग कर्युछे . ( मेघकुमारे जेम वीतराग प्रभुना उपदेशथी आंखो सिवाय शरीरना वीजा भागोनी ममता उतारीने दवा विगेरेनो पण त्याग कर्यो हतो; अथवा आखा शरीरनी चामडी जीवतां उतारी; तो पण कोइना उपर कोप न कर्यो; तेत्रा खंधकमुनि माफक थाय छे.) तेवा साधु सर्व कर्मनो क्षय करे छे. अथवा अर्चा एटले तेज अने ते पण क्रोध छे, अने तेना कहेवाथी वीजा कषायो पण जाणी लेवा. तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे के:- जे पुरुषमांथी कषायरुप - अर्चा सर्वथा नष्ट पामी छे, तेवा अकषायी पुरुषोना आठ कर्म नाश थाय छे. वळी, श्रुतचारित्ररुप धर्मने जाणनारा ते धर्मविदो छे, ते कुटिलतारहित ( सरळ ) छे. प्रश्न: - तेम हशे; पण वीजा साधुए शुं आलंबन लइने तेवुं करवुं ? उत्तर:- 'आरंभ' विगेरे. सावद्यक्रिया - अनुष्ठानना आरंभथी थयेलं आरंभज ते, कृत्य दुःखरुप छे, एवं वधां प्राणीओने प्रत्यक्ष छे. अर्थात् खेती, नोकरी वेपार विगेरे आरंभमां प्रवर्तेलो मनुष्य, शरीर, तथा मननां दुःखने भोगवे छे, ते वाणीथी पण कहेवाय नहि. (एटलं वधुं छे, ) ते साक्षात् संपूर्ण देखनारा (केवळज्ञानी) ए कहेलुं छे. आ वधु दुःख स्वयं - अनुभवसिद्ध जाणीने तेओ शरीरशोभारहित (मृताच ) तथा धर्मविद तथा सरळ बने छे, एवं केवळज्ञानीओ कहे छे ते बतावे छे. आ प्रमाणे | केवलज्ञानीओए कहेलुं छे. प्रश्नः - केवा पुरुषोए ते कहेलुं छे ? उत्तरः- समत्व-दर्शीओ, (सम्यक्त्व-दर्शीओ) अथवा समस्त देख सूत्रम् ॥५३१॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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