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________________ आचा० ॥४४३॥ REACHESESSAATKE ६ पाछो तिर्यंचमां गर्भना दुःखने अनुभवे छे, पण जे मुनि कफायरहित अप्रमादी छे तेने शुं लाभ थाय छे. ते बतावे छे. शब्द रुप विगेरेमा जे रागद्वेष थाय छे तेनी उपेक्षा करतो रुजु (सरल) यति थाय छे. एटले खरी रीते जे यति (साधु) छे ते रुजु छे. पण सूत्रम् गृहस्थ तो स्त्री विगेरे पदार्थ ग्रहण करवाथी वक्र छे (स्त्री विगेरेने मेळववा राजी राखवा गृहस्थने कपट करवू पडे छे.) वळी ते ।। सरल साधु गायन विगेरेनी उपेक्षा करतो मरण (मार) नी शंका करे छे. एटले बीजाने मारतां (दुःख देतां) डरे छे. तेथी पोते ॥४४३॥ पण मरणथी बचे छे. वळी ते काम (पाप चेष्टाओ) थी अप्रमादी रहे छे. अने जे साधु काम चेष्टाना पापोथी दूर रहे, तेज खरी रीते मन वचन कायाना पापथी उपरत (वचेलो) छे. कोण बचे छे? ते कहे छे. जे वीर छे तेज गुप्त आत्मा छे. अने ते खेदज्ञ छे 4 (एटले बीजा जीवोना खेदने जाणे छे तेथी कोइने दुःख देतो नथी। ते खेदज्ञ साधु गायन विगेरेना आनंदना विषयोना पर्यव (भागो) अनुकुळ थतां पोते तेना निमित्तना शस्त्रने पाणीओने दुःखकारक जाणीने तेमों लोन न थतां ते निपुण साधु निरवद्य अ-ल. नुष्ठान जे अशस्त्र छे ते करे छे. अने ते संययना खेदने जाणनारो पर्यव जात शस्त्रना खेदने जाणनारो छे, तेनो सार आ छे के जे साधु पासे शब्दादि पर्यायो सुंदर के विरुप आवे तो लेवानी के त्यागवानी क्रिया बीजा जीवोने दुःखरुप छे तेम जाणे छे अने मध्यस्थपणुं राखg; ते अपीडाकारक होवाथी जे अशस्त्ररुप-संयम छे. ते पोताने अने परने उपकार करनारो छे, एवं जाणे छे. . आ प्रमाणे, जाणीने शस्त्रने छोडे, अने अशस्त्र (संयम) तेने ग्रहण करे; एटले ज्ञान- फळ ए छे के विषयोना आनंदने छोटनारो; समभाव राखनारो जीवोने बचावीः संयम पाळे छे, (अने जीवो उपर रागद्वेष करे तो, संयम पाळी शकतो नथी.) 'अथवा, गायन विगेरे पर्यायोथी, अथवा गायन विगेरेथी उत्पन्न थयेल रागद्वेषना पर्यायोथी जे ज्ञानावरणीय विगेरे कर्म द । -
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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