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________________ ॥४४४ बंधाय छे, तेने दाहकपणाथी तप ते शस्त्र छे, ते तपना खेदने जाणे; ते खेदज्ञ छे. कारणके तेना ज्ञान तथा योग्य अनुष्ठानवडे आचा०15 जे अशस्त्र-संयम छे, तेने पण जाणनारो छे, अने संयम तप खेदने जाणनारो आश्रवनिरोध विगेरेथी भवभ्रमणां कर्म जे पूर्वे IV एकठां कर्यां छे, तेनो क्षय थाय छे, अने कर्मक्षयथी जे लाभ थाय छे, ते कहे छे:॥४४४॥ अकर्मन वर्णन. . ___अकर्म एटले, जेने आठ प्रकारनां कर्ममांथी एक पण कर्म न होय; ते छे, अने ते नारक, तिर्यंच, नर, देव एवी चार गतिमां भ्रमण करवानो व्यवहार नथी; तथा, पर्याप्त-अपर्याप्त अवस्था नथी; तथा बाळपण, तथा कुमारपणुं विगेरे संसारी व्यपदेशो (जुदी | 4 जुदी व्यवस्थान नाम) नथी; अने जे सकर्मी छे, तेने कर्मवडे नारकादि व्यपदेश होय छे. तथा ते कर्मनी उपाधिवडे एटले, ज्ञानावरणीय विगेरेथी जुदां जुदां विशेषणो कर्म संबंधी थाय छे ते कहे छे:-जेमके, मति, श्रुत अवधि, मनःपर्याय ज्ञानवाळो होय; तेने तेनी बुद्धिना प्रमाणमां मंदबुद्धिवाळो, अथवा तीक्ष्ण बुदिवाळो कहेवाय छे. (१) है तथा चक्षुदर्शनी अचक्षुदर्शनी निद्राळ विगेरे छे. (२) तथा सुखीदुःखी कहेवाय छे. (३) मिथ्यादृष्टि, सम्यग मिथ्यादृष्टि, स्त्रीपुरुष नपुंसक-कषायी विगेरे छे. (४) ६ तथा सोपक्रम निरुपक्रम आयुवाळो, अल्प आवखावालो; विगेरे छे. (५) नारक तिर्यंचयोनीवाळो, तथा एकेन्द्रिय, बे इन्द्रिय, है पर्याप्तो-अपर्याप्तो, सुभग-दुर्भग विगेरे छे. (६) उंचगोत्रवाळो, नीचगोत्रवाळो छे, (७) कृपण, त्यागी, निरुप भोगी, निर्वीर्य छे.(८) आ प्रमाणे आठे कर्मने लीधे संसारी जीवो ओळखाय छे. जो आवी रीते छे तो शुं करवू ते कहे छे. ज्ञानावरणीय विगेरे कर्म छे GEECRECRECREC APER
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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