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________________ लेवो, अने भावगुण ते जीव अने अजीवनो जाणवो, आ प्रमाणे थोडामां बतावी तेनी विशेष व्याख्या करे छे. आचा० क्षेत्र गुण. सूत्रम् देवकुरु, उत्तरकुरु, हरी वर्ष, रस्यक, हेमवत, हैरण्यवत आ छ युगलिकनां क्षेत्र छे. ते सीवाय छपन्न अंतर द्वीप छे. तेमां पण ॥२३७॥ युगलिक छे, तेओने खेती विगेरे कृत्य करवा वीना जे जोइए ते कल्प वृक्षमाथी मली शके छे, तेथी ते अकर्म भूमि कहेवाय छे. ४ ॥२३७॥ आ क्षेत्रने आश्रयी गुण जाणवो, वली त्यां जन्मेला मनुष्यो देव कुमार जेवा सुंदर रुपवाला सदा जुवानी भोगवनारा पुरे आयुष्ये मरनारा अनुकूळ सुंदर पांचे इन्द्रिय विषय सुख भोगवनारा स्वभावोज सरळ कोमळ स्वभाववाळा अने भद्रक भावना गुणथी देवर लोकमां जनारा होय छे ( साथे स्त्री पुरुषतुं जोडुं जन्मे अने ते नरमादा तरीके रहे तेथी ते युगलिक कहेवाय) काळ गुण. भरत औरवत आ चे क्षेत्रमा प्रथमना त्रण आरामां एकान्त सुखवाला वखतमा युगलिकोनी स्थिति सदा सुंदर रुपवाली अने यौवनवाली रहे ले. फळ गुण. दफळ तेज गुण, ते फळ गुण कहेवाय; अने ते फळ क्रियाने आश्रयी छे, ते क्रिया सम्यकदर्शन ज्ञानचारित्र विना आ लोक अथवा है परलोकने आश्रयी जे करवामां आवे; ते एकांत अनंत सुखने आपनारी नहोवाथी तेनो फळ गुण मळ्या छतां अगुण जेवो छे, पण है। RAGACE+
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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