SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचा० ॥२३६॥ बनाववा चौद पूर्व धारी आहारक लब्धिवाला साधु कोइपण वखत संदेह दूर करवा तीर्थकर पासे पोतानुं शरीर मोकलवा आहारक शरीर बनाववा बहारना प्रदेशोने लेवा आत्माना- प्रदेशांने बहार फेंके छे, अने केवलि समुद्घात समस्त लोकव्यापी छे एटले तेनी अंदर बधा समुद्घात छे, एवं निर्युक्तिकार पोतेज कहे छे. चौद राज लोक प्रमाण आकाश खंड छे तेमा व्यापे छे कारण बहु प्रदेशनुं गुण पणुं छे. आ केवलि समुद्घात केवळ ज्ञान थया पछी केवळ ज्ञानी प्रभु जुए छे के मारुं आयुष्य थोडुं छे, अने कर्म वधारे भोगववानां छे तेथी दंड कपाट मंथन आंतरा पूरवा, ते प्रमाणे संकोचमां पण जाणवुं एटले पहेले समये उपर नीचे दंड समानवीजे समये वन्ने छेडे कपाट समान त्रीजे समये मथनी ( रवैया ) ना आकारे तथा चोथे समये आंतरा पूरे छे; ते प्रमाणे पाहुँ चार समयमां मूल शरीर करी नाखे छे. आ द्रव्य गुण छे हवे क्षेत्र गुण विगेरे कहे छे. देवकुरु सुसम सुसमा, सिद्धी निब्भय दुगादिया चेव । कल भोअणूज्जु वंके जीवमजीवे य भावंमि ॥१७२॥ जाणवा, क्षेत्र ते देव कुरु विगेरे जुगलीआना क्षेत्र छे. त्यां सदाए कल्प वृक्ष रहे छे, काळ गुणमां सुखम सुखम विगेरे नामना आरा . जेमां काळे करीने वस्तुमां फेरफार थाय छे. फळ गुणमां सिद्धि गति छे. पर्यव गुणमां निर्भजना ( निश्चित भेद ) छे. गणना गुणमां बेण चार विगेरे नुं गणवुं छे. करण गुणमां कळार्कौशल्य छे, अभ्यास गुणमां भोजन विगेरे छे. गुण अगुणमां सरळता छे, अगुण गुणमां वक्रता छे, भवगुण अने शीलगुणनो भावगुणनो विषय लेवाथी जीवनुं ग्रहण लेवाथी तेमां समावेश थइ गयो छे, तेथी गाथामा जुदुं बतान्युं नथी. भावगुण ते जीवनो नारक विगेरे भव जाणवो, शीलगुणमां जीवनो क्षमा विगेरे गुण युक्त आत्मा सूत्रम् ॥२३६॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy