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________________ सूत्रम् પરતા सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र साथे मळी तेने अनुसार जे क्रिया थाय; ते एकांत अनंत वाधारहित संपूर्ण सुख आफ्नार सिद्धि (मोक्ष) फळ आचा० 18 आपनार छे, तेज फळगुण मेळवाय छे, तेथी एम का केः-सम्यकदर्शन ज्ञानचारित्रवाळी क्रिया मोक्षफळ आपनारी छे, अने ते शिवायनी क्रिया संसारीक सुखफळना आभास मात्र ( वनावटी) छे. माटे ते निष्फळ छे. एटला माटे मोक्षार्थिए फळगुण तेनेज | ॥२३८॥ कहेवो के जेमां सम्यकदर्शन ज्ञानचारित्र विगेरेनी प्राप्ति थाय. पर्यायगुण पर्याय तेज गुण, ते पर्यायगण छे, एटले गुण अने पर्याय, ए बनेनो नयवादना अंतरपणाथी अभेद स्वीकार्यो छे, अने ते निर्भजनारूप छे. निश्चितभजना एटले, निश्चितभाग जाणवो. जेमके, स्कंधद्रव्य छे, तेने देशपदेश बडे भेद पाडतां परमाणु सुधी भेदो पढे छे. ( पुद्गल द्रव्य ज्यारे आखं होय; त्यारे स्कंध कहेवाय; अने 'तेनो एक भाग लइए तो देश, अने सौथी बारीक भाग लइए: तो प्रदेश कहेवाय अने ते प्रदेश छुटा पडे तो परमाणुं छे.) परमाणु पण एक गुणो काळो वे गुणा काळा साथे मेळवतां अनंता भेदवाळो थाय छे. आ वधा पर्यायगण छे. गणना गुण बेत्रण चार विगेरे, घणी मोटी राशि होय; ते गणना गण वडे निश्चय कराय छे के, आटलुं एनु प्रमाण छे. करण गुण. कळाकौशल्य ते, पाणी'विगेरेमा इन्द्रियोने कुशळता माटे, ( कसरत माटे ) नहावा, तरवा विगेरेनी क्रिया कराय छे. ASS54--
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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