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भवभावना
प्रकरणे
साहइ जणणी जह वच्छ ! तुज्झं मज्झ वि य एक्क एव पिया । माम्वहओ एसो चिय तुह जणओ चेव तेणेको ||७||
कह पुण एवं अंबत्ति पुच्छिए कहइ तस्स सा सव्वं । तं सोऊण कुमारो वचइ सहस त्ति नित्र्वेयं ॥८॥ सुगुरुसमी दिक्खं पडिवज्जइ सो य धेवदियहेहिं । गीयत्थो तो विहरइ एगलविहारपडिमा ॥९॥ . किकिंधिपव्वए अन्नया य पडिमट्टियस्स निसिदिवसं । जाया बुट्टी तत्तो देहमलं खा लिऊण जलं |१०| पाहणदहे पवि जायं सव्वोसहीसरूवं तं । पहाओ जणो विमुञ्चइ तहिं तओ सव्ववाहीहिं ॥११॥ इय दक्खिणाव हे तम्मि पन्वए तं पवत्तए तित्थं । रोहीडंगंमि नयरे विहरंतो वह सो तत्तो ॥ १२॥ वीरसिरीवहिणीए भिक्खट्टा आगओ नियघरम्मि ।' दिट्ठो तो नेहेणं रुन्नं दट्टु किसाइतणुं ॥१३॥ परिणमइ अन्नह् च्चिय तं कुंचनराहिवस्स जह एसो । एयाए हिययदइओ कोऽवि तओ नीहरंतो सो | १४ | भिन्नो सत्तीह इमेण पिट्ठिदेसम्मि पडइ धरणीए । पुवि पि हु सिद्धाए तस्स तओ मोरिविजाए ||१५|| मोरियखंदियसेले नीओ उप्पाडिऊण सो साहू । तत्थ य समाहिपत्तो दिवं गओ तो पएसस्स ॥ १६ ॥ जायं तस्sभिहाणं सामिगिहं सो य खंदसेलम्मि । कालगओ तो जायं नामं खंदो त्ति बीयं पि ॥ १७॥
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उत्तम
गुण
भावनायां
स्कन्दमुनिवर
कथा
॥ ४३० ॥