SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोक भवभावना प्रकरणे स्वभावभावनायां सुकोशलपचरित्रम् अह कित्तिधरो राया सहदेवीर समं सभजाए। भुजंतो विसयसुहाइं रजमणुपालइ नएण ॥१७॥ पेच्छइ य अन्नया सूरमंडलं राहुणा गसिजंतं । तत्तो संवेयगओ मणम्मि एवं विचिंतेइ ॥१८॥ उज्जोइयभुवणयलो असेसगहचकमउलियपयावो । पावइ इमं अवत्थं जइ ता सूरोऽवि दुप्पेच्छो ॥१९॥ तो अवसेसनरेहिं गणणा अम्हारिसेहिं का एत्थ ? । नीसेसजयविरुद्ध पभवंते तम्मि देहम्मि ॥२०॥ सेवामि पुवपुरिसेहिं सेवियं ता अहं पि जिणदिक्खं । एयम्मि अभिप्पाए नाए मंतीहिं सो भणिओ॥ उप्पजइ जाच सुओ तुम्हाणं देव ! ता पडिक्खेह । ताणुवरोहेण तओ सो गमइ दिणाई किच्छेण ॥२२॥ सहदेवीए जाओ पुत्तो मंतीहिं गोविओ सोऽवि । वडढइ पच्छन्न ठिओ सुकोसलो नाम से विहियं ॥२३॥ अह नाओ कित्तिधरण कह विरजं इमस्स तो दाउं। पव्वज पडिवन्नो पासे सिरिविजयसेणस्स ॥२४॥ तत्तो सुकोसलनिवो पालइ रज मुणी विकित्तिधरो । गीयत्थो संजाओ एगल्लविहारमल्लीणो ॥२५॥ भिक्खहा य पविहो सागेयपुरम्मि कह वि तो विट्रो । सहदेवीए नयराओ ती धाडाविओ तत्तो ।२६ निद्धाडावइ अन्ने वि सयलपासंडिणो इमा भीया। मा मज्झ सुओऽवि इमेहिं हीरिही विप्पयारेउं ।२७ ८ ता रुयइ अंबधाई पुट्ठा य सुकोसलेण नरवइणा । कहियं च तीइ जह तुज्झ जणयनरनाहकित्तिधरो ॥ तुह रजं दाऊणं पव्वइओ सो इहागओ अज । निद्धाडिओ य तुह जणणिदुट्ठपुरिसेहिं नयराओ ॥२९॥ 2565 ॥ ३४४ ॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy