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________________ भवभावना प्रकरण कहहिं च इमेहिं तुम पि एयं न पूरि तरसि । ता साहेसु कहं पुण पूरेयवो तएवि इमो ॥२८॥ मम्मणसो भणइ उवाया देव ! एत्थ बहवे मए समारद्धा । चिट्ठति जेण जलथलमग्गेसु बहुई भंडाई ॥२९॥ |, वणिक पेसवियाई हेडाओ तह य बद्धाउ गयतुरंगाणं । किसिसंगहपमुहेसु य विहिओ जत्तो उवाएसु ॥३०॥ कथायां तो भणियं नरवइणा जइ एवं भद्द! ता किमयम्मि | कट्ठागरिसणविसए तुच्छोवायम्मि लग्गोऽसि? ॥ मम्मणस्य तो भणइ मम्मणोऽवि हु मह देव ! सरीरयं किलेससहं । वावारंतररहिएण तो इमं पि हु समारद्धं ॥ | राजानं |, प्रति स्वाआह तओ नरनाहो संतेऽवि ह एत्तियम्मि विहवम्मि । भिप्राय किं दुहमणुहवसि तुमं एत्तियमेत्तं ? महाभाग ! ॥३३॥ कथनम् जो दाणभोगणरहिओ विहवो किं तेण अह धणी इमिणा । कणयायलसत्ताए सब्वोऽवि तओ धणी होज्जा ॥३४॥ दाणं भोगो य तहा विहवस्स फलं विणा य पुण तेहिं । नासो चिय अवसिस्सइ तस्स न अन्ना गई जम्हा ॥३५॥ केवलकिलेसभावं अणुहविऊणं धणं कयं जेहिं । पावं चिय तप्पच्चयमुवचिणि ते भमंति भवं ॥३६॥ धणसंचया य विहिया भवं भमंतेहिणंतठाणेसु । चत्ता य अपरिभुत्ता अदिन्नदाणेहिं जीवहिं ॥३७॥ ॥ ॥२२८ ॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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