SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजः भवभावना प्रकरणे जिणवरधम्मु कहवि हउं पाविउ, चुक्कउ तासु पमाइण पाविउ । तेणुप्पन्नु अमरकम्मारउ, अह कयंतु कुविउ किं मारउ ? ॥१४५॥ सुहलवलंपड केवि सढ, सिढिलिहिं धम्मु महेसि । लद्धी हारहिं नीसुइय को'डी कागिणिरेसि॥ १४६॥ गिम्हउम्हि हउँ चिरमायाविउ, तत्तु तवेण किंतु मायाविउ । जलवजिइ सरवरि जिह वग रठ, नवरि तेत्थु कप्पासु नव गरउ ॥१४७॥ तो नाह ! तं करेजसु, जं किंचि वि अत्तणो हियं मुणसि । अयं तु पवजिस्सं जिणदिक्खं अणुमया तुमए ॥१४८॥' गृहस्थत्वे धर्मकरण विषये कथनस्य राज्याः प्रत्युत्तरम् तो भणइ नरवरिंदो किं धम्मो होइन हुगिहत्थाणं?। वियलंतचरणमोहा संविग्गा तो पिया भणड॥ घरपारंभनिरुभिय, वोलइ जम्मु वि जाहं । जीवदया वरु धम्मु कउ होइ निहत्थहं ताहं ॥१५०॥ पियघरघरिणिपरिग्गहविसमग्गहगहिउ, अलिड पयंपइ वंचइ परु करुणिमरहिउ । जइ निहत्थु सुहमग्गि सग्गि वचइ कुमइ, तो मुणिवर ओहट्टिय घट्टिय नरयगई ॥१५॥ १. "डि वि का सर्वासु ॥ ॥ १७८ ॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy