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विसयसुहमोहियमणां न मुणइ तिक्खाई नरयदुक्खाई। नियइ वराओ काओ पिंडं न य ल उडयपहारं॥ तणगयजललवपेलवह, कारणि विसयसुहस्सु । हिमगिरिसरिसु पडंतु सिरि, न गणइ दुक्खसहस्सु ॥ जं च पिय ! जंपियमिणं दिट्टमदिटक्कए य को चयइ ? | तमजुत्तं धम्मफलं दीसइ जं कारणाणुगयं ॥ सुकुलुग्गमपियसंगमसोहग्गारोग्गसंपयसुहाई। धम्मफलाई नरवर ! किं न विसिट्टाई दिद्याइं? ॥१३८
सहिसंपयघरघरिणीसहिउं जं रइसुहु माणइ, तंपि दिट्ठ खणदिट्टनट्ठ तडितरलु न जाणइ । एउ अज्जु अवरज्जु एउ इय जणु उपपेक्खइ, अवियाणियजमभडचडक निवडंत न पेक्खइ ।।
जो जाणइ सो जाइसइ, तसु नरयहमई मग्गु न जाणिउ |
एउ भणंतु वि नरइ गठ, नियकयकम्मरज्जु संदाणिउ ॥१४०॥ सुरकिंकर परिभवविमणु, चिंतह एम्ब हयासु | धम्मि निरुज्जमु आसि हां, तेण हुयउ सुरदासु ॥१४१ देवत्तणि तल्लेवि परु, जं आणवइ सुरेसु । किं कीरइ सो वयरियह, धम्मपमायह दोसु १४२॥ सुरभविहीणतण नियवि, जूरइ एम्ब वराउ । नरभवि लद्धइ जिणवयणि, वलि किउ धम्मि पमाउ॥
इडिसायसोहग्गजसत्थिउ, कय गुरुपरिहवु कुमयकयत्थिउ।
तेण जाउ इह भवि सुरकिब्विसु, परिहरणिज्जु जेम्व सुरकिब्विसु ॥१४४॥ १. डि-वा० ॥२. सरोसु-सर्वत्र ।
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