SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कः पुनरसाविति ?, उच्यतेरायगिहं नाम पुरं जत्थ अमाणो जणो अदाणो य । सम्माणदाणनिरओ विनह सुही पसमकलिओऽवि॥ तत्य य पुरोहिओ नरवइस्स विप्पो महु त्ति सुपसिद्धो | सच्छंदयाविमुको जो सच्छंदोवि सयकालं ॥२॥ तस्स य जालिणि नामा भजा पुत्तो य ताण वसुनामा | घूया य तेसि विहवा गंगा नामेण अत्थि गिहे। वेयज्झयणनिमित्तं देसंतरमुवगओ वसू तत्तो। धूया सुइवायरया अब्भोखंति च्चिय भमेह ॥४॥ गेहे पुरोहियस्स व छाणं छडुइ सया वि मायंगी। अभोक्खंती हिंडइ तो सव्वं ताण साधूया ॥५॥ कुणइ दुगंछंच बहुं महुविप्पेण वि पुरस्स बाहिम्मि । अइगरुयजन्नसाला चउदिसिरमणिजवणसंडा॥६ कारविया तीइ सया नियजन्ने कुणइ बहुयपसुघायं । काऊण नरिंदस्स वि एवं चिय कुणइ यहजन्ने ॥७॥ अह अचग्गलसुइवायविणडियं पासिऊण तं धूयं । पियराइं तह वि लोओ अन्नो वि हु भणइ सयलं पि ॥८॥ Pा रेहइ पमाणमेत्तं कीरंतं अग्गलं तु उवहासं । जणइ तओ य दुगुंछं किमेत्तियं कुणसि तं ? भद्दे ! ॥९॥ el इय वारिजंती वि हु अहियं चिय सा करेइ सुइवायं । मरिऊण अन्नया तीइ चेव मायंगियाइ इमा ॥१० उयरे धूयत्ताए उववन्ना तो इमीइ जायाए । गहियाए एइ गिहं मायंगी तस्स विप्पस्स ॥११॥ Palamil
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy