SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भव- भावना प्रकरणे दुःखानि पुत्तेणं चिय सद्धिं गिण्हइ दिक्खं तओ इमो कि पि | जाओ पोढो जंपइ न तरामि उवाहणाहिं विणा । प्रमादिनां भमि खंत ! तओ सो करुणाइ समप्पए इमाओऽधि। साधूनां भणइ तओ उवरितला फुडंति सीएण तो तस्स ॥७॥ महिषभव दिन्नाई खासडाइं भणइ तओ अन्नया य गिम्हम्मि । बाहिजइ मह सीसं उसिणेणं तो पिया तस्स ॥ गमनम् सीसदुवारियमणुजाणए तओ सो भणेइ न तरामि | खंत ! अहं हिंडे भिक्खायरियाइ तो खंतो ॥९॥ तत्र च विविधउवविद्वस्स वि एयस्स आणिउं देइ इच्छियं भिक्खं । तो भणइ खंत ! न तरामि सोविउं भूमिसंधारे ॥ तो कट्टफलहकंवलयसेन्जमणुजाणए तओ भणइ । न तरामि खंत ! लोयं सहिउं अह मुंडइ खुरेण ॥११॥ अग्रहाणएण न तरामि अच्छिउं फासुएण नीरेण | अंगं से पक्खालइ इय जं जं भणइ सो खुड्डो ॥१२॥ तं तं नेहनिबद्धो गुरुसाहणं निसेहमाणाणं । कुणइ पिया इय काले वच्चंते अन्नया भणइ ॥१३॥ *अविरइयाइ विणाऽहं तरामि न हु अच्छिउं तओ खंतो। पभणइ सढो अजोग्गो सिग्धं नीहरसु वसहीए ॥१४॥ निस्सारिओ य एसो कम्मं काउंन याणए किं पि । भट्ठवउ त्ति जणण य धिक्कारिजइ समग्गेण ॥१५॥ सनार्या-इत्यर्थः। ॥ १३८॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy