SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुगमे ॥ कथानकं तूच्यते ॥प्रियंगुवणिगाख्यानकम् ॥ पोयणपुरं ति नामेण पुरवरं जत्थ धम्मसत्थाणं । अत्थेसु असंतुट्ठो लोओ न उणाइ दविणत्थे ॥१॥ तत्थ य पियंगुनामो वणिओ परिवसइ इढिसंपन्नो । अइसयमिच्छद्दिट्ठी जिणधम्मुवहासनिरओ य ॥२ रूयाइसयसमिद्धा पियमइनामाइ तरुणभज्जाए | कामासत्तो चिट्ठइ सढसीलो अलियवाई य ॥३॥ परपरिवाई पिसुणो कूडक्कयकरणकूडमाणरओ । सिक्खविओ पुण केणइ भणइ केली किलत्तेण ॥४॥ मन्नामि दसणं पिययमाइ एक सुहं सरागोऽवि । पावइ जेण जिणाईण दंसणाई तु सयलाई ॥५॥ | केवलदंभफलाई दिट्ठो सो केण एत्थ सुरलोओ ? । केणावि निरयवासो दिह्रो दिट्ठीए परिकहह ॥३॥ को ताओ आगओ ? जाव अस्थि गेहम्मि भोजमिह किं पि । तुम्हाण वि ता विलसेह खाह पियह य विगयसंका ॥७॥ पासंडियवयणेहिं तु भोलिया मा य लद्धभोगाणं । वंचेह अप्पयं एवमाइ उवइसइ उम्मग्गं ॥८॥ अह पियमईइ पुत्तो जाओ अइपवरलक्षणोवेओ । वद्धावयणं कारइ पियंगुसेट्ठी तओ तुह्रो ॥९।। Pा नामं च देवदिन्नो त्ति ठावियं तस्स तेहिं तुट्टेहिं । चिट्ठइ सुहेण धाईहिं लालिओ पंचहिं कमेण ॥१०॥ ||॥१२१
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy