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________________ ३०४ तम वाणी नहीं व्यर्थ है, भंग कभी नहीं होय । सिद्ध० लगातार मुखतें खिरे, संशय तमको खोय ॥ ह्रीमह अमोघवाचे नम अध्य||३३६।। वि. वस्तु अनन्त पर्याय है, वचन अगोचर जान । तुम दिखलाये सहज ही, हरी कुमति मतिवान ॥ ही मर्हप्रवाच्यानतवाचेनम मध्य वचन अगोचर गुरण धरो, लहै न गरगधर पार । तुम महिमा तुमहीं विष, मुझ तारो भवपार॥ॐ ह्रीं पहं प्रवाचे नम पय॑ ॥३४॥ तुम सम वचन न कहि सके, असतमती छमस्थ । धर्म मार्ग प्रकटाइयो, मेटी कुमति समस्त ॥ॐ ह्री अहं अद्वैतगिरे नमःप्रयं ।३४२॥ सत्य प्रिय तुम बैन हैं, हितमित भविजन हेत। सो मनिजन तुम ध्यावतै, पावै शिवपुर खेत ॥ही प्रहं मूनृतगिरे नमःप्रयं ।३४३ नहीं सांच नहीं झूठ है, अनुभव वचन कहात । सो तीर्थंकर ध्वनि कही, सत्यारथ सत बात ॥ ह्रीमह सत्यानुमयगिरेनमानय ३४४ पूजा मिथ्या अर्थ प्रकाश करि, कुगिरा ताको नाम। ३०४ सत्यारथ उद्योत करै, सुगिराताको नास ॥ॐ ह्रीं प्रहं सुगिरे नम अध्यं ॥३४५।। अष्टम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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