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________________ सिद्ध० Far २२८ धौव्य पंचमगती पाई, जन्म पुनि मररण छुटकाई । पूर्ण श्रुतज्ञान फल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्री पाठक वनसंसाराय नमः अर्घ्यं ।। ३५५ ।। अनूपम रूप अधिकाई, असाधाररण स्वपद पाई । पूर्ण. ॐ ह्री पाठक एकत्वस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ।। ३५६ ।। आ तुम सम न गुंग होई, कहो एकत्व गुरण सोई । पूर्ण. ॐ ह्री पाठेकएकत्वगुणाय नम अर्घ्यं ।। ३५७ ।। निजानन्द पूर्ण पद पाया, सोई परमात्म कहलाया । पूर्ण. ॐ ह्री पाठकक्त्वपरमात्मने नमः अर्घ्यं ॥३५८।। उच्चगत मोक्षका दाता, एक निज़धर्म विख्याता । पूर्ण. श्रो ह्री पाठकक्त्वघर्माय नम अर्घ्यं । ३५६ ।। जु तुम चेतनता परकासी, न पावै ऐसी जग्रवासी । पूर्ण. श्रो हो पाठकएकत्वचेतनाय नमः अर्घ्यं ॥ ३६० ॥ ज्ञान दर्शन स्वरूपी हो, आसाधारण अनूपो हो । पूर्ण. श्री ही पाठकएकत्वचेतन स्वरूपाय नमः मर्घ्यं ।। ३६१ ।। पष्ठम पूजा २२=
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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