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________________ सिद्ध MARA गह नित निज चतुष्टयको, मिलें कबहूँ नहीं परसों। पूर्ण. ओ ह्री पाठकएकत्वद्रव्याय नम अध्यं ।। ३६२॥ स्वपद अनुभूत सुख रासी, चिदानन्द भाव परकासी । पूर्ण. प्रो ह्री पाठचिदानन्दाय नम. प्रय॑ ।। ३६३ ॥ अन्त पुरुषार्थ साधक हो, जन्म मरणादि बाधक हो। पूर्ण. प्रो ह्री पाठसिद्धमाघकाय नेम मध्यं ॥ ३६४ ॥ स्वप्रातम ज्ञान दरशाया, ये पूरण ऋद्धि पद पाया। पूर्ण. यो ह्री पाठकऋद्धिपूर्णाय नम अयं ॥ ३६५ ॥ सकल विधि मूर्छा-त्यागी, तुम्ही, निरग्रंन्यं बड़भागी। पूर्ण प्रो ह्री पाठनिग्रंन्याय नम अर्ध्य ॥ ३६६ ॥ निजाश्रित अर्थ जगनाही, अबाधित अर्थ तुममाहीं। पूर्ण. ___ो ह्री पाठकाविधानाय नम अयं ।। ३६७ ॥ न फिर संसार पद पाया, अपूरव बन्ध विनसाया। पूर्ण. मो ह्री पाठकससाराननुबन्धाय नम: प्रेध्यं ॥ ३६८ ॥ आप कल्याणमय राजो, सकल जगवासं दुख त्याजो। पूर्ण. प्रो ह्री पाठककल्याणाय नम: अर्घ्य ॥ ३६६ ।। Annanimaanin मसमो पूजा १ २२६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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