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दश पूर्व महा जिनवारणी, निश्चय अघहर सुखदानी। तुम गुण.
प्रो ह्री पाठकदशपूर्वांगाय नम: अर्घ्य ॥३४८।। दश चार पूर्व जिनवानी, निश्चय शिववास करानी । तुम गुण.
ओ ह्री पाठकचतुर्दशपूर्वांगाय,नम अयं ॥३४६॥ . निज प्रात्म चर्ण प्रकटावै, प्राचारं अंग कहलावै। तुम गुरण. ओ ह्री पाठकाचारागाय नम अध्य ।।४५०॥ .
रेखता छन्व । विविध शंकादि तुम टारी, निरन्तर ज्ञान आचारी। . पूर्ण श्रुतज्ञान फल पाया, नमूसत्यार्थ उवझाया ॥
ॐ ह्री पाठकज्ञानाचाराय नम अयं ॥३५॥ पराश्रित भाव विनशाया, सुथिर निजरूप दर्शाया। पूर्ण.
*ह्री पाठकतपसाचाराय नम' अध्यं ।।३५२॥ मुक्तपद दैन अनिवारी, सर्व बुध चरण पाचारी । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकरत्नत्रयाय नम अध्यं ॥३५॥ . शुद्ध रत्नत्रय धारी, निजातमरूप अविकारी। पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकरत्नत्रयसहायाय नमः अयं ॥३५॥
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