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________________ सिद्ध वि. विन प्रतक्ष अनुमान सुबाधित, सुमतिरूप परिणामा । मंगलमय अहंतमती मै, नमूदेउ शिवधामा ॥२८॥ ॐ ह्री अहंन्मगल अभिनिवोधकाय नमः अयं । नय विकलप श्रुत अंग पक्षके, त्यागी है. भगवन्ता । ज्ञाता दृष्टा वीतराग, विख्यात नमूअरहंता ॥२६॥ ॐ ह्री अर्हन्मगलश्रुतात्मकजिनाय नम' अध्यं । मंगलमय सर्वावधि जाकरि, पावै पद परहन्ता । बन्दू ज्ञान प्रकाश नाश भव, शिव थल वास करता ॥३०॥ ॐ ह्री अर्हन्मगलावधिज्ञानाय नम अयं । वर्धमान मनपर्यय ज्ञान करि, केवल भानु उगायो। भव्यनि प्रति शुभ मार्ग बतायो, नमसिद्ध पद पायो ॥३१॥ ॐ ह्री अहन्मगलमन.पर्ययज्ञानाय नम अध्यं । ता विन और अज्ञान सकल, जग कारण बंध प्रधाना । नमूपाइ अरहन्त मुक्ति पद, मंगल केवलज्ञाना ॥३२॥ ॐ ह्री प्रहंन्मगलकेवलज्ञ नाय नमः अध्यं । षष्ठम पूजा १६२
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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