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________________ निरावरण निरखेद निरन्तर, निराबाधमई राजै। केवलरूप नमूसब अघहर, श्री अरहन्त विराजै ॥३३॥ वि० केवलरूप नमू ग लकेवलस्वरूपात दर्शन पाया। १६३ . nuruRRAN चक्ष आदि सब भेद विधन हर, क्षायक दर्शन पाया। श्री अरहन्त नमूशिववासी, इह जग पाप नशाया ॥३४॥ ॐ ह्री ग्रहन्मगलकेवलदर्शनाय नम' अध्यं । जग मंगल सब विघन रूप है, इक केवल अरहन्ता। मंगलमय सब मंगलदायक, नमूकियो जग अन्ता ॥३५॥ ॐ ह्री अहंन्मगलकेवलाय नमः अध्यं । केवलरूप महामंगलमय, परम शत्रु च्यकारा। सो अरहन्त सिद्ध पद पायो, नमूपाय भवपारा ॥३६॥ ॐ ह्री अर्हन्मंगलकेवलरूपाय नमः प्रय॑ । शुद्धातम निजधर्म प्रकाशी, परमानन्द विराजै । सो अरहन्त परम मंगलमय, नम शिवालय राजै ॥३७॥ ॐ ह्री अहंन्मगलधर्माय नमा मध्यं । पष्ठम् पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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