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________________ ७८२ युगवीर-निबन्धावली यह कह कर पडित मनीरामजी लोगोकी इस पापमय प्रवृत्तिको धिक्कारते हुए वहाँसे प्रस्थान कर गये । पाठकगण | ऊपरके दृष्टान्तमे देखी आपने आजकलके मनुष्योकी लीला । वास्तवमे पडितजीने बहुत ठीक कहा है, जब मनुष्योकी विवेककी आँख फूट जाती है, फिर उनको अपना हितअहित और धर्म-अधर्म कुछ नही सूझता, वे बिलकुल अन्धे होकर पापमे प्रवृत्ति करने लगते हैं और जरा भी शका नहीं करते। हमारे भारतवासी बहुत दिनोसे अपना विवेक-नेत्र खो बैठे हैं। उसीका यह फल है कि आज भारतवर्ष मे दिन-पर-दिन व्यभिचार का प्रचार बढता जाता है, कोई कोई अच्छे-अच्छे उच्चकुलीन मनुष्य भी हीन-से-हीन जाति तककी स्त्रियोको सेवन करने लगे है । वेश्या जैसी पापिनी और व्यभिचारिणी स्त्रियाँ तो मगलामुखी और कुलदेवियाँ समझी जाती हैं, जगह-जगह वेश्या-नृत्यका प्रचार है, व्यभिचारको लोग धर्मकी चादर उढानेका प्रयत्न कर रहे हैं, पापकर्म और हीनाचारसे लोगोकी ग्लानि जाती रही है, खुले दहाने लडकियाँ वेची जाती हैं, दिन-दहाडे मन्दिरो और तीर्थोका माल हडप किया जाता है, दीन पशुओका मास खाया जाता है, शरावकी बोतले गटगटाई जाती हैं, धर्मसे लोग कोसो दूर भागते हैं और विद्या, चतुराई कला-कौशलके कोई पास तक नही फटकता। फिर कहिये, यदि भारतवासी दुखी न होवें तो क्या होवें? हमारे भारतवासियोकी आजकल ठीक वही दशा है, जैसाकि श्री आचार्यों ने कहा है - पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः । फलं नेच्छन्ति पापस्य पापं कुर्वन्ति यत्नतः ॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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