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________________ विवेककी आँख ७८१ तो पडे," चौथेने कहा "मेरी रायमे पडितजीको बीस रुपये मिलने चाहिये ।" इस प्रकार किसीने कुछ कहा और किसीने कुछ । आखिर बहुत कुछ वाद-विवादके पश्चात् दो चार भले मानुसोने, जिन्हे कुछ थोडी सूझ-बूझ थी. यह फैसला कर दिया कि पडितजीने तीस दिन तक कथा पढी है इसलिये रुपया रोजके हिसाब से इनको पूरे तीस रुपये दिये जायें और उसी वक्त तीस रुपये पडितजीके हवाले किये गये । इन तीस रुपयो तथा लोगोकी इस हालतको देखकर और वेश्याके उन तीन सौ रुपयोका स्मरणकर जो उसको तीन-चार घण्टेके नाच के उपलक्ष्यमे ही दिये गये थे पडितजीके बदनमे आग-सी लग गई और उन्होने शोकके साथ किंचित् जोश मे आकर अपना माथा धुना और सिर पीटकर यह दोहा पढा फूटी आँख विवेककी, कहा करै जगदीश । कंचनियाको तीनसौ, मनीरामको तीस ॥ अर्थात् अब विवेककी आँख फूट गई, भले-बुरेका और अपने हित-अहित का कुछ विचार नही रहा तो फिर जगदीश ही क्या कर सकता है । यह विवेकके नष्ट हो जानेका ही नतीजा है जो पापका उपदेश देनेवाली, नरकका मार्ग दिखानेवाली और धर्मकर्मका सर्वनाश करनेवाली एक व्यभिचारिणी स्त्री ( कचनी ) को तो तीन-चार घण्टे तक देह मटकानेके उपलक्ष्यमे ही तीन सो रुपये दिये गये । और मुझ मनीरामने तीस दिन तक बरावर धर्मका उपदेश दिया, जिससे जीवोका कल्याण होवे और परलोकमे सद्गतिकी प्राप्ती होवे । मैंने बहुत कुछ मगज खपाया, लेकिन मुझको मुश्किलसे तीस ही रुपये दिये । 'अफसोस "
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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