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________________ ७८० युगवीर-निवन्धावली रडीके नाचमे तो हजारो मनुष्य मौजूद थे, वे कहाँ गये ? शायद आज सव लोगोको कथाकी खबर न हुई हो। परन्तु अगले दिन उतने भी न रहे, जिससे पडितजीका ( खवर न होनेका ) भ्रम मिट गया , और शनै शनै कयामे आने वाले कुल पांच-सात ही आदमी रह गये और वे भी कौन ? बुड्ढे-बुड्ढे ठलुए मनुष्य, जिन्हे कुछ काम-धन्धा न था, जिनकी सव इन्द्रियाँ शिथिल थी और जो अपने मकानकी दहलीजमे या दरवाजे पर चौकीदारकी तरह पड़े रहते थे, वे वहां न पड़े, कथामे अचारके घडेकी तरह जाकर धरे गये । कथा कौन सुनता था, लगे ऊंघने और खुर्राटे भरने। पडितजी बके जाओ और मगज खपाये जाओ-हां, यदि किसी समय किसीको कुछ होश-सा आगया तो कह दिया-"वाह पडितजी । बहुत अच्छा कहा।" ऊंघते और टूलते समय उन वुड्ढे-ठुड्डोके हस्त-पदादिककी जो क्रिया होती थी उसका फोटू शब्दोमे कौन उतार सकता है ? शब्दमे इतनी शक्ति ही नही है, परन्तु हॉ। जव ऊंघते-ऊँघते एकका सिर दूसरेसे टकरा जाता था तो 'ठांदेसी' को आवाज जरूर होती थी, उससे सबकी आँख खुल जाती थी और कुछ देरके लिये निद्रा देवीकी उपासना छूट जाती थी। खैर । ज्यो-त्यो करके तीस दिनमे वह कथा पूरी हुई, उसी दिन नगरमे बुलावा दिलाया गया कि कथा पूरी होगई है उसपर कुछ चढाना चाहिये । सब पचायत इकट्ठी हुई और आपसमे विचार होने लगा कि पडितजीको क्या कुछ दक्षिणा दी जाय । किसीने कहा “पडितजीको दस रुपये दे देने चाहिये," दूसरेने कहा "नही, कुछ कम देने चाहिये," तीसरेने कहा "दस नही, पन्द्रह देने चाहिये, इन्होने महीने भर मेहनतकी, आठ आने रोज
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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