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________________ ७७२ युगवीर-निबन्धावली वेश्याके इन वचनोको सुनते ही पडितजीके घर गगा आ गई और थैलीका नाम सुनते ही वे फूलकर कुप्पा हो गये। आपने सोच लिया कि, जब वेश्याने अपने हाथसे कुल भोजन ही तय्यार किया है तो फिर उसके हाथसे एक ग्रास अपने मुखमे ले लेनेमे ही कौन हर्ज है ? यह तो सहज ही मे एककी दो थैलियाँ बनती है, दूसरे जव गगाजीमे गोता लगावेगे तव थोडा-सा गंगाजल भी पान कर लेवेंगे, जिससे सब शुद्धि हो जावेगी। इस लिये पडितजीने वेश्याकी यह वात भी स्वीकार कर ली। जब वेश्याने पडितजीके मुँहमे देनेके लिये ग्रास उठाया और पडितजीने उसके लेनेके लिये मुँह बाया (खोला) तब वेश्याने क्रोधमे आकर बडे जोरके साथ पडितजीके मुखपर एक थप्पड मारा और कहा कि- "पापका बाप पढा या नहीं ? यही (लोभ) पापका बाप है जिसके कारण तुम अपना सारा पढा-लिखा भुलाकर अपने धर्म-कर्म और समस्त कुल-मर्यादाको नष्ट-भ्रष्ट करनेके लिये उतारू हो गये हो।" थप्पडके लगते ही पडित जीको होश आ गया और जिस विद्याके पढने के लिये वे घरसे निकले थे वह उन्हे प्राप्त हो गई। आपको पूरी तौरसे यह निश्चय हो गया कि, लोभ ही समस्त पापोका मूल कारण है। पाठकगण | ऊपरके इस उदाहरणसे आपकी समझमे भली प्रकार आ गया होगा कि यह लोभ कैसी बुरी बला है । वास्तवमे यह लोभ सब अनर्थों का मूल कारण है और सारे पापोकी जड है। जिसपर इस लोभका भूत सवार होता है वह फिर धर्मअधर्म, न्याय-अन्याय और कर्तव्य-अकर्तव्यको कुछ नही देखता, उसका विवेक इतना नष्ट हो जाता है और उसकी आँखोमे इतनी चर्बी छा जाती है कि वह प्रत्यक्षमे जानता और मानता हुआ भी धनके लालचमे बुरे-से-बुरा काम करनेके लिये उतारू
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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