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________________ पापका बाप ७७३ हो जाता है। बहुतसे दुष्टोने इस लोभ होके कारण अपने मातापिता और सहोदर तकको मार डाला है। आज कल जो कन्या. विक्रयकी भयकर प्रथा इस देशमे प्रचलित है और प्राय ६-१० वर्षकी छोटी-छोटी निरपराधिनी कन्यायें भी साठ-साठ वर्षके बुड्ढोके गले बाँधी जा रही हैं वह सब इसी लोभ-नदीकी वाढ है। इसी प्रकार इस लोभका ही यह प्रताप है जो बाजारोमे शुद्ध घीका दर्शन होना दुर्लभ हो गया है-धीमे साँपो तककी चर्बी मिलाई जाती है, तेल मिलाया जाता है और वनस्पति घी तथा कोकोजम आदिके नाम पर न मालूम और क्या-क्या अलावला मिलाई जाती है, जो स्वास्थ्यके लिये बहुत ही हानिकारक है। दवाइयो तकमे मिलावट की जाती है और शुद्ध स्वदेशी चीनीके स्थानपर अशुद्ध तथा हानिकारक विदेशी चीनी व ती जाती है और उसकी मिठाइयां बनाकर देशी चीनीकी मिठाइयोके रूपमे बेची जाती है। बाकी इसकी बदौलत तरह-तरहकी मायाचारी, ठगी और दूसरे क्रूर कर्मोकी बात रही सो अलग। सच पूछिये तो ऐसे-ऐसे ही कुकर्मोंसे यह भारत गारत हुआ है। और उसका दिन-पर-दिन नैतिक, शारीरिक तथा आध्यात्मिक पतन होता जाता है। पहले भारतमे ऐसा भी समय हो चुका है कि, राजद्वारमें आम तौरपर या किसी कठिन न्यायके आ पडनेपर नगर-निवासी तथा प्रजाके मनुष्य बुलाये जाते थे और उनके द्वारा पूर्ण रूपसे ठोक और सत्य न्याय होता था। परन्तु अफसोस | आज भारतकी यह दशा है कि न्यायको जड काटनेके लिए प्राय हर शख्स कुल्हाडी लिये फिरता है, जगह-जगह रिश्वतका बाजार गरम है, अदालतोमें न्याय करनेके लिये नगर-निवासियोका बुलाया जाना तो दूर रहा, एक भाई भी दूसरे भाईके ईमान
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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