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________________ ७२० युगवीर-निवन्धावली समर्पण-पत्रमे उनको प्रस्तावना लिख देनेको प्रेरणाका उल्लेख करने तथा उन्हें इतिहासको पाने का अधिकारी वतलाने के अनन्तर यह लिया गया कि-''आपकी समाज-सेवा, साहित्य सेवा इतिहास-प्रीति, सत्य रुचि और गुणज्ञता भी सब मिलकर मुझे इस बात के लिये प्रेरित कर रही है कि मैं अपनी इस पवित्र और प्यारी ऋतिको आपकी भेंट कर मत मैं आपके करकमलोमे हमे सादर समर्पित करता हूँ। आशा है आप स्वयं इगने लाभ उठाते हुए दूसरोको भी यथेष्ट लाम पहुँचानेका यत्न करेंगे," साथ ही एक पत्र द्वारा इतिहास पर उनकी सम्मति मांगी गई और कही कोई सशोधनकी जरूरत हो तो उसे सूचना-पूर्वक कर देनेकी प्रेरणा भी की गई, तब इस सबके उत्तरमे प्रेमीजीने जिन शब्दोका व्यवहार किया है, उनमे उनका सीजन्य टपकता है। १५ मार्च सन् १९२५ के पत्रमे उन्होंने लिखा :____ "मैं अपनी वर्तमान स्थितिमे भला उस ( इतिहास) मे सशोधन क्या कर सकता हूँ और सम्मति ही क्या दे सकता हूँ। इतना मैं जानता हूँ कि आप जो लिखते हैं वह सुचिन्तित और प्रामाणिक होता है। उसमे इतनी गुजाइश ही आप नहीं छोडते हैं कि दूसरा कोई कुछ कह सके। इसमे सन्देह नहीं कि आपने यह प्रस्तावना और इतिहास लिखकर जैन-समाजमे वह काम किया है जो अबतक किसोने नही किया था और न अभी जल्दी कोई कर ही सकेगा। मूर्ख जैन-समाज भले ही इसकी कद्र न करे, परन्तु विद्वान् आपके परिश्रमको सहन मुखसे प्रशसा करेंगे। आपने इसमे अपना जीवन ही लगा दिया है । इतना परिश्रम करना सबके लिये सहज नहीं है। मैं चाहता हूँ कि
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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