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________________ युगवीर-निवन्धावली व्यक्तियोका प्राबल्य होगया है जो समाजके हिताहितपर ध्यान न रखकर अपनी ही चलाना चाहते हैं और उनकी सुननेको तय्यार नही, तब आपने उसे छोड़ दिया और दूसरे रूपमे समाज की सेवा करने लगे । वे अपने विचारके धनी थे, धुन के पक्के थे और अपने विचारोका खून करके कुछ भी करना नही चाहते थे । ७१४ सत्योदय, जैनहितैपी और जैनजगत आदि पत्रो मे वे बराबर लिखते रहे हैं। और अपने विचारोको उनके द्वारा व्यक्त करते रहे हैं । उन्होने सैकडो लेख लिखे ओर 'ज्ञान सूर्योदय' आदि पचासी पुस्तकें लिख डाली । लेखनकलामे वे बड़े सिद्धहस्त थे, जल्दी लिख लेते थे ओर जो कुछ लिखते थे युक्ति-पुरस्सर लिखते थे तथा समाज के हितकी भावभासे प्रेरित होकर ही लिखते थे - भले ही उसमे उनसे कुछ भूलें तथा गलतियाँ हो गई हो, परन्तु उनका उद्देश्य बुरा नही था । आदिपुराण - समीक्षादि जैमी कुछ आलोचनात्मक पुस्तको तथा लेखोको लेकर जब समाजने उनका पुनः बहिष्कार किया, और इस तरह उनके विचारोको दवाने कुचलनेका कुत्सित मार्ग अख्तियार किया तथा उनके सारे किये-करायेपर पानी फेरकर कृतघ्नताका भाव प्रदर्शित किया, तब उन्हे उस पर बडा खेद हुआ और उनके चित्तको भारी आघात पहुंचा, जिसे वे अपनी वृद्धावस्था के कारण सहन नही कर सके । और इस लिये कुछ समय के बाद सामाजिक प्रवृत्तियोसे ऊवकर अथवा उद्विग्न होकर उन्होने विरक्ति धारण कर ली । उनकी यह विरक्ति उन्हीके शब्दो मे वारह वर्ष तक स्थिर रही। इस अर्सेमे, वे कहते थे, उन्होने कुछ नही लिखा, लेखनीको एकदम विश्राम दे दिया और पुत्रो के पास रहकर उनके बच्चोसे ही चित्तको बहलाते रहे ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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