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________________ जैनजातिका सूर्य अस्त ७१३ खोला था, जिससे भी कितने ही ग्रन्थ प्रकाशित हुए है, और साथ ही हिन्दीमे मासिक रूपसे एक 'जैनपत्रिका' भी जारी की थी। ___मेरे देवबन्दमे मुख्तारकारी करते हुए, आपने ही मुझे महासभाकी ओरसे मिले हुए हिन्दी जैनगजटकी सम्पादकीके ऑफर ( offer )को स्वीकार करनेके लिये बाध्य किया था, और इस तरह जैनगजटको फिरसे उसकी जन्मभूमि ( देवबन्द ) मे बुलाकर उसके द्वारा अपनी कितनी ही सेवा-भावनामोको पूरा किया था। आप उसमे बराबर लेख लिखा करते थे और अपने सत्परामर्शों द्वारा मेरी सहायता किया करते थे। उस समय 'आर्यमतकी लीला' नामसे जो एक लम्बी लेखमाला प्रकाशित हुई थी उसके मूल लेखक आप ही थे। समाजसेवाके भावोसे प्रेरित होकर ही आपने मेरे मुख्तारकारी छोड़नेके साथ-एक ही दिन १२ फरवरी सन् १९:४ को-खूब चलती हुई वकालतको छोडा था। और तवसे आप सामाजिक उत्थानके कार्योंमें और भी तत्परताके साथ योग देने लगे थे-जगह-जगह आना-जाना, सभा-सोसाइटियोमे भाग लेना, लेख लिखना, पत्रव्यवहार करना आदि कार्य आपके बढ़ गये थे । कुछ समयके लिये घरपर कन्या पाठशाला ही आप लेवैठे थे, जिसकी एक कन्या वर्तमानमे प्रसिद्ध कार्यकर्ती लेखवती जैन हैं। खतौलीके दस्सा-बीसा केसमें विद्वद्वर प० गोपालदासजोका सहयोग प्राप्त कर लेना और दस्सोके पक्ष में उनकी गवाही दिला देना भी आपका ही काम था। प० गोपालदासजीके बाईकाट अथवा बहिष्कारको विफल करने में भी आपका प्रधान हाथ रहा है। ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुरमे पहुँचकर आपने उसकी भारी सेवाएँ की हैं, और जब यह देखा कि उसमे कुछ ऐसे
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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