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________________ ७०४ युगवीर-निवन्धावली अपनी सुयोग्य पुत्री गुणमाला तथा पोती जयवन्तीको भेजती रही हैं, जिससे मुझे कोई विशेष चिन्ता करनी नही पड़ी। इसके सिवाय, बीमारियोके अवसर पर आप वरावर मेरी खवर लेती रही है, माताकी तरहसे मेरे हितका ध्यान रखती और मुझे धैर्य बँधाती रहती हैं। इस समय भी आप मेरी बीमारीको खवर पाकर और यह जानकर कि सारा आश्रम बीमार पड़ा है, बोरसेवामन्दिर मे पधारी हुई है और रोटी-पानीको कुछ व्यवस्था कर रही हैं। सत्कार्योंके करने में मुझे सदा ही आपसे प्रेरणा मिलती रही है-कभो भी आप मेरी शुभ प्रवृत्तियोमे बाधक नही हुई। इन सब सेवाओके लिए मैं आपका बहुत ही उपकृत हूँ और मेरे पास शब्द नहीं कि मैं आपका समुचित आभार प्रकट कर सकू। वीरसेवामन्दिरसे आप विशेष प्रेम रखती हैं और सदा उसकी उन्नतिकी भावनाएँ करती रहती हैं। हालमै आपने वोरसेवामन्दिरको १०१) रु० की सहायता भी प्रदान की है। अन्तिम जीवन : जिन श्रीदादीजीका उपर्युक्त सक्षिप्त परिचय मैने अपनी उक्त रुग्णावस्थाके समय ही यह समझकर लिखा और उसे उनके चित्रसहित 'अनेकान्त' में प्रकाशित किया था कि कही बीमारीके चक्करमे पडकर ऐसा न हो कि मुझे आपका परिचय लिखने और आपके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनेका अवसर ही न मिल सके, उन पूज्य दादोजीके विषयमे मैने उस वक्त यह नहीं सोचा था कि वे इतना शीघ्र ही किसी विधिव्यवस्थाके वश सारे प्रेमवन्धनोको तोड कर हमे छोड जानेवाली हैं और इसलिये कोई ढाई वर्ष बाद अनेकान्तके
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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