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________________ श्रीदादीजी ७०३ पहले ही चल बसनेसे उसकी गोद भी खाली होगई। और दादीजीकी सारी आशाओ पर पानी फिर गया। इस तरह दादोजीका जीवन एक प्रकारसे दुख और सकटकी ही करुण कहानी है। परन्तु आपने बडी वीरताके साथ सकटोका सामना किया है और धैर्यको कभी भी हाथसे जाने नही दिया। आप सदा बातकी सच्ची और धुनकी पक्की रही है। दूसरेके थोड़ेसे भी उपकारको आपने बहुत करके माना है। जिसे आपने एक बार वचन दे दिया, फिर लाख प्रलोभन मिलने तथा प्रचुर आर्थिक लाभ होनेपर भी आप उससे विचलित नही हुईं-इस विषयकी कई रोचक घटनाएँ हैं, जिन्हे यहाँ देनेके लिए स्थान नही है । पैसा आप कभी फिजूल खर्च नहीं करती, परन्तु जरूरत पड़ने पर उसके खुले हाथो खर्चनेमे कभी सकोच भी नही करती। इन्ही सब बातोमे आपका महत्व सनिहित है। मेरे मुख्तारकारी छोडने पर आपने नानौतासे देवबन्द आकर मुझे शाबाशी दी और मेरी कमर हिम्मतकी थपथपाई। इसपर गृहिणीको कुछ बुरा भी लगा, क्योकि पिता, भाई आदि और किसीने भी मेरे इस कार्यका इस तरहसे अभिनन्दन नहीं किया था। परन्तु बादको आपके समझाने पर वह भी समझ गई । देहली-करोल बागमें जब समन्तभद्राश्रम था तब एक बार सारे स्टॉफके बीमार पड जाने और अनेकान्तके प्रूफ आदि कार्योंकी मारामारीके कारण मुझे पांच दिन तक भोजन नही मिला था, उस समय खबर पाकर आप ही नानौतासे देहली पहुंची थी और आपने छठे दिन मुझे भोजन कराया था। वीरसेवामन्दिरकी स्थापनाके अवसरसे आप उसके हरएक उत्सवमे आतिथ्य-सेवाके लिए स्वय पधारती रही हैं अथवा
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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