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________________ लेखक जिम्मेदार या सम्पादक ६४१ यहाँ पहले चरण में 'गति' की जगह या तो 'गती' होना चाहिये था और या 'कुगति' अन्यथा एक मात्रा कम होकर छदभग होता है । दूसरे चरणमे 'न घाटका छोडा' इस शब्द-प्रयोगसे एक मात्रा वढ जाती है । इसके स्थानमे 'रखा न वाटा' होता तो ज्यादा अच्छा रहता । साथ ही 'अन्नमे खाली' यह वाक्यपयोग भी कुछ बेमानी-सा जान पड़ता है और सुन्दर मालूम नही होता । इसमे अच्छा इसके स्थानपर 'हाय । अन्त बदहाली' बना दिया जाता अथवा 'हुई अन्न बदहाली' ऐसा कुछ रख दिया जाता तो ठीक होता । तीसरे चरणमे 'मृत्यु' पद बाधित है | वह छन्द शास्त्रकी दृष्टिमे या तो 'मृत्यू' होना चाहिये था अथवा उसे निकालकर उसके स्थानपर 'मरना' बना देना चाहिये था और साथ ही 'अच्छी' को 'अच्छा' में परिवर्तित कर देना चाहिये था । इस पद्यका भी चौथा चरण कुछ कम विचित्र नहीं है । इसके पूर्वाधमे १५ और उत्तरार्धमे १३ मात्राएं हैं । एक अर्धमेसे एक मात्राको घटाने रूप और दूसरे अर्व में बढाने रूपसे सशोधन करना चाहिये था, जो नही किया गया। इससे छन्द भंग हो रहा है। साथ ही 'ठुकराया जाय जनका तन' यह मुहावरा भी कुछ अच्छा मालूम नही होता । इसके स्थानपर 'ठुकराया जावे नरर्तन यह' ऐसा ही यदि रख दिया जाता ओर 'निर्लज्जपन' को 'निर्लजपन' में बदल दिया जाता तो छन्दोभगादिका यह सारा दोष मिट जाता । लेलो पीछा भगवन् अपना यह झगड़ालू जीवन । नही चाहिये, तंग आ चुका, देख जगतकी उलझन ॥ ४१ कविताका यह अन्तिम पद्य आधा पद्य है । इसमे 'पीछा ' शब्द बहुत खटकता है - व्यावहारिक दृष्टिसे वह कुछ वेमुहावरासा भी जान पड़ता है। इसके स्थानपर यदि 'वापिस' शब्द रख
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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