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________________ लेखक जिम्मेदार या सम्पादक ६३५ पत्रमे प्रकाशित किसी भी लेख अथवा कविताके साहित्यकी, यदि वह उद्धृत नही है, सबसे वडी जिम्मेदारी उसके सम्पादककी होती है । सम्पादकोको लेखोकी मूल स्पिरिटको कायम रखते हुए उनके सशोधनका-उन्हे घटा-बढाकर उपयोगी बनानेकापूरा अधिकार होता है और इसलिये यदि कोई लेखादिक त्रुटित एव स्खलित रूपमे उनके पास पहुँचता है तो उसे सुधारकर अथवा त्रुटियोकी सूचनाको लिये हुए नोटादि लगाकर छापना उनका कर्तव्य होता है। यदि वे ऐसा नही करते, अपने कर्तव्यसे भ्रष्ट होते हैं तो सम्पादक पदपर प्रतिष्ठित रहनेके योग्य नही कहलाते। सम्पादकके लिये सम्पादनकलाके साथ-साथ सुलेखन कलासे परिचित होना भी अनिवार्य है। जो सम्पादक किसी लेख अथवा कविताके त्रुटिपूर्ण साहित्यको भी न सुधार सकता हो उसका सम्पादक होना न होना बराबर है। ऐसा सम्पादकत्व वस्तुत. विडम्बना मात्र है, क्योकि सम्पादककी पोजीशन मात्र लैटर बॉक्स अथवा पोस्टआफिस जैसी नही होती, जिसको जैसा भी मैटर पोस्ट किया गया उसे उसने बिना 'चूं-चरा' अथवा तरमीम-तनसोखके यथास्थान पहुँचा दिया, बल्कि एक वडी ही जिम्मेदारी एव अधिकारप्राप्तिको लिये हुए महान् पद होता है, जिसे धारण करनेका पात्र कोई भी साधारण मनुष्य अथवा अव्युत्पन्न और असावधान विद्वान् नही हो सकता। इसीसे विदेशोमे सम्पादकीय पदके लिये खास तय्यारी की जाती है। वहाँ इस पदकी बडी प्रतिष्ठा है और सम्पादकोके हाथमे राष्ट्र तथा समाजकी बहुतकुछ बागडोर रहती है। ___ वास्तवमै लेखकोको सुलेखक और कवियोको सुकवि बनानेमे सुयोग्य सम्पादकोका प्राय बहुत बड़ा हाथ होता है। प्रारम्भिक अथवा अनभ्यस्त लेखकोसे शुरू-शुरूमे भूलोका होना स्वाभाविक
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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