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________________ ६३४ युगवीर-निबन्धावली दूसरे अंक ( न०१७ ) में प्रकाशित 'पैसा' नामकी कविता है और जिसके लेखक है-'श्री अक्षयकुमारजी जैन दिल्ली।' पत्रका यह अग मुझे महा विकृत नजर आया और यह खयाल उत्पन्न होने लगा कि कही कायाकल्प निरा ढकोमला ही तो नहीं है। मैंने पुन गीरसे अवलोकन किया, फिरसे जांच की और उसे विकृत ही पाया-उसका प्राय कोई ऐसा पद्य नहीं है जो दो-एक भट्टी भूलो अथवा मोटी-मोटी त्रुटियोको लिये हुए न हो । देखते ही मेरे सामने यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि कविताके इस विकारका अथवा उसके वर्तमान प्रकाशित रूपका जिम्मेदार कौन ? लेखक जिम्मेदार या सम्पादक ? इसी प्रश्नको लेकर आज मैं इस आलोचनात्मक लेखके लिखनेमे प्रवृत्त हुआ हूँ, जिसका ध्येय है मुख्यतया 'ओसवाल' का और गोणतया इसी टाइपके दूसरे असावधान पत्रोका सुधार । आजकल लेखक, कवि तथा सम्पादक बननेकी धुन बहुतोके सिरपर सवार है--नित्य नये-नये लेखक, कवि और सम्पादक प्रकाशमे आते रहते है, परन्तु उनमेसे अपनी-अपनी जिम्मेदारीको ठीक समझने अथवा कर्तव्यका यथेष्ट पालन करनेवाले विरले ही होते हैं-अधिकाश तो टकसाली लेखक, यो ही रवड छन्दोमें तुकवन्दियाँ करनेवाले कवि और प्राय आफिस-वियरर अथवा टाइटिल-होल्डर सम्पादक देखनेमे आते हैं। यद्यपि लेखकादिकी नित्य नई सृष्टिका होना कोई अवाछनीय अथवा बुरी बात नहीं, प्रत्युत देश, धर्म तथा समाजकी प्रगतिके लिये आवश्यक और अभिनन्दनीय है, परन्तु उनका अपने कर्तव्य एव जिम्मेदारीको न समझना अथवा उसकी प्रगतिके स्थानपर उल्टी अवनति या अधोगति तकके कारण बन जाते हैं, और इसलिये उपेक्षा किये जानेके योग्य नही।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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