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________________ लेखक जिम्मेदार या सम्पादक : ७: _ 'ओसवाल' के दो प्रारभिक अक मिले-~-एक सयुक्त अक १५-१६ और दूसरा असयुक्त न० १७ (सन् १९३८)। मालूम हुआ, 'ओसवाल-सुधारक' नामका जो पत्र करीब ४ वर्पसे सेठ अचलसिंहजीके सपादकत्वमें आगरासे निकलता था वही अव 'ओसवाल' नाम धारण करके कलकत्तासे श्री गोवर्धनसिंहजी महनौत बी० काम० के सम्पादकत्वमे निकलने लगा है-अर्थात् ओसवाल महासम्मेलनने अपने पाक्षिक मुखपत्र 'ओसवालसुधारक' का उसकी ३ वर्ष ७ मासकी आयुमे ही कायाकल्प कर डाला है, जिसके द्वारा 'सुधारकत्व' का विकार दूर होकर अव वह मात्र 'ओसवाल' रह गया है। विकारके पुन प्रवेशकी आशकासे जलवायुके परिवर्तनको लेकर उसका स्थान भी परिवर्तित कर दिया गया है और साथ ही बॉडीगार्ड ( सरक्षकसम्पादक ) को भी बदल दिया है। इसके सिवाय पत्रके स्वास्थ्यको कायम रखने और उसमे नूतन तेज लानेके लिये वह एक प्रभावशालिनी सचालकसमितिके सुपुर्द किया गया है, जिसके कर्णधार है ओसवाल समाजके गण्यमान्य सज्जन बाबू बहादुरसिंहजी सिंधी, श्री सन्तोपचन्द्रजी तरडिया और विजयसिंहजी नाहर जैसे प्रतिष्ठित और साक्षर सेठ-साहकार । ___ यह सब देखकर बडी आशा बँधी और कायाकल्प-द्वारा निर्विकार हुए पत्रके शरीरको देखनेकी उत्कण्ठा भी वढी । बाहरकी टीपटाप, कागज, छपाई, सफाई सुन्दर जान पडी, चित्रोसे वह सुसज्जित पाया गया, कलेवरमे भी कोई कमी मालूम नही दी। फिर अचानक उसके एक अगपर दृष्टि पडी, जो कि
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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