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________________ द्रव्य-सग्रहका अग्रेजी संस्करण ५५३ वसुनन्दि सैद्धान्तिकके गुरु थे और जिन्हे वसुनन्दि-श्रावकाचारमे 'जिनागमरूपी समुद्रकी वेलातरगोसे धूयमान और सम्पूर्ण जगतमे विख्यात' लिखा है। बहुत सम्भव है कि, यही नेमिचन्द्र द्रव्यसग्रहके कर्ता हो। परन्तु मेरी रायमे अभी तक यह असिद्ध है कि, द्रव्यसग्रह कौनसे नेमिचन्द्राचार्यका बनाया हुआ है, और जवतक यह सिद्ध न हो जाय कि द्रव्यसगह तथा गोम्मटसारके कर्ता दोनो एक ही व्यक्ति थे उस समय तक प्रोफेसर साहवकी उक्त ३० पेजकी सारी प्रस्तावना प्राय व्यर्थ और असम्बन्धित ही रहेगी । क्योकि वह बहुधा गोम्मटसारके कर्ता नेमिचन्द्र और उनके शिष्य चामुण्डरायको लक्ष्य करके ही लिखी गई है। ८ ग्रथभरमे, यद्यपि अनुवादकार्य आमतौरसे अच्छा हुआ है, परन्तु कही-कही उसमे भूलें भी की गई हैं, जिनके कुछ नमूने इस प्रकार है - (क) सम्यग्दर्शनादिकका अनुवाद करते हुए 'सम्यक्' शब्दका अनुवाद ( Right ) आदिकी जगह ( Perfect ) अर्थात् 'पूर्ण' किया है, और इस तरह पर पूर्णश्रद्धान, पूर्णज्ञान' ( केवलज्ञान ) और पूर्णचारित्रहीको मोक्षकी प्राप्तिका उपाय बतलाया है । परन्तु श्रद्धानादिककी यह पूर्णता कौनसे गुणस्थानमे जाकर होती है और उससे पहलेके गुणस्थानोमे सम्यग्दर्शनादिकका अस्तित्व माना गया है या कि नही, साथ ही इसी ग्रंथकी मूल गाथाओमे रत्नत्रयका जो स्वरूप दिया है उससे उक्त कथनका कितना विरोध आता है, इन सब बातो पर अनुवादक महाशयने कुछ भी ध्यान नही दिया । इसलिए यह अनुवाद ठीक नहीं हुआ। १. देखो इसी ग्रन्थका पृ० ११४ जहाँ Perfect Knowledge ( पूर्णज्ञान) उस ज्ञानको वतलाया है जो ज्ञानवरणीय कर्मके क्षयसे उत्पन्न होता है।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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