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________________ युगवीर - निबन्धावली ( ख ) पृष्ठ ११४ पर, दर्शनावरणीय कर्मके क्षयसे उत्पन्न होनेवाले अनन्तदर्शनका अनुवाद Perfect Faith अर्थात् 'पूर्ण श्रद्धान' अथवा सम्यक् श्रद्धान किया है, जो जैन दृष्टिसे बिल्कुल गिरा हुआ है । इस अनुवादके द्वारा मोहनीय कर्मके उपशमादिकसे सम्बन्ध रखनेवाले सम्यग्दर्शनको और दर्शनावरणीय कर्मके क्षयोपशमादिकसे उत्पन्न होनेवाले दर्शनको एक कर दिया गया है । ५५४ ( ग ) पृ०५ पर 'माण्डलिक ग्रन्थकार' का अर्थ 'अन्य समस्त ग्रन्थकार' ( All other writers ) किया है जो ठीक नही है । मालिकसे अभिप्राय वहाँ मतविशेषसे है । (घ) प्रस्तावना मे एक स्थानपर, 'सुयोगे सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटित भगणे' का अनुवाद दिया है - (When the Auspicious mrigsira star was visible अर्थात् जिस समय शुभ मृगशिरा नक्षत्र प्रकाशित था । इस अनुवादमे 'सुयोगे सौभाग्ये' का कोई ठीक अर्थ नही किया गया। मालूम होता है कि इन पदोमे ज्योतिषशास्त्रविहित 'सौभाग्य' नामके जिस योगका उल्लेख था, उसे अनुवादक महाशयने नही समझा और इसीलिये सौभाग्यका ( Auspicious ) ( शुभ ) अर्थ करके उसे मृगशिराका विशेषण बना दिया है । इस प्रकारकी भूलोके सिवाय अनुवादकी तरतीब ( रचना ) मे भी कुछ भूलें हुई हैं, जिनसे मूल आशयमे कुछ गडबडी पड गई है ? जैसे कि गाथा न० ४५का अनुवाद । इस अनुवादमे दूसरा वाक्य इस ढगसे रक्खा गया है, जिससे यह मालूम होता है कि पहले वाक्यमे चारित्रका जो स्वरूप कहा गया है, वह व्यवहारनयको छोडकर किसी दूसरी ही नय-विवक्षासे कथन किया गया है । परन्तु
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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