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________________ ५५२ युगवीर-निवन्धावली कल्पना जरूर उत्पन्न होती है'। इसके सिवाय संस्कृत टीकामे अनेक स्थानो पर नेमिचन्द्रका सिद्धान्तदेव नामसे उल्लेख किया गया है, 'सिद्धान्तचक्रवर्ती' नामसे नही, और गोम्मटसारके कर्ता नेमिचन्द्र 'सिद्धान्तचक्रवर्ती' कहलाते हैं । उन्होंने कर्मकाडकी एक गाथा ( न० ३६७ ) में स्वयं अपनेको चक्रवर्ती प्रकट भी किया है। साथ ही, एक बात और भी नोट किये जानेके योग्य है और वह यह है कि द्रव्यसग्रहके कर्ताने भावास्रवके भेदोमें 'प्रमाद' का भी वर्णन किया है और अविरतके पाँच तथा कपायके चार भेद ग्रहण किये हैं । परन्तु गोम्मटसार के कर्तानि 'प्रमाद' को भावास्रवके भेदोमे नही माना और अविरतके ( दूसरे ही प्रकारके ) बारह तथा कपायके पच्चीस भेद स्वीकार किये हैं, जैसा कि दोनो ग्रन्थोकी निम्न गाथाओसे प्रकट है मिच्छताविरदिपमादजोगको हादओ थ विष्णेया । पण पण पणद्रह तिय चटु कमसो भेदा दु पुव्वस्स ॥ - द्रव्यसग्रह ३० मिच्छत्तमविरमणं कसायजोगा य आसवा होंति । पण वारस पणवीसं पन्नरसा होंति तव्भेया ॥ - गोम्मटसार, कर्मकाड ७८६ एक ही विषय पर, दोनो ग्रंथोके इन विभिन्न कथनोसे ग्रथ कर्ताओकी विभिन्नताका बहुत कुछ बोध होता है । इन सब बातो - के मौजूद होते हुए कोई आश्चर्य नही कि द्रव्यसग्रहके कर्ता गोम्मटसारके कर्तासे भिन्न कोई दूसरे ही नेमिचन्द्र हो । जैनसमाजमे नेमिचन्द्र नामके धारक अनेक विद्वान आचार्य हो गये हैं । एक नेमिचन्द्र ईसाकी ग्यारहवी शताव्दिमे भी हुए हैं जो १. वादको लघुद्रव्य संग्रहकी खोज होकर वह सर्वप्रथम अनेकान्त वर्ष १२ की किरण ५ में प्रकाशित भी किया जा चुका है ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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