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________________ ४६० 1 बतलाना चाहता हूँ कि अपने द्वारा खोले गये मर्म या रहस्यको कानजी स्वामीका श्रीकुन्दकुन्दाचार्य के मत्थे मढना किसी तरह भी समुचित नही कहा जा सकता। इससे साधारण जनता व्यर्थ ही भ्रमका शिकार बनती है । अस्तु, कानजीस्वामीने जिनशासनका जो भी मर्म या रहस्य अपने प्रवचनमे खोलकर रक्खा है उसका मूलसूत्र वही है कि 'जो शुद्ध आत्मा है वह जिनशासन है।' यह सूत्र कितना सारवान् अथवा दोपपूर्ण है और जिनशासनके विषयमे लोगोको कितना सच्चा ज्ञान देनेवाला या गुमराह करनेवाला है इसका कुछ दिग्दर्शन इस लेखमे पहले कराया जा चुका है। अब में जिनशासन से सम्बन्ध रखनेवाली प्रवचनकी कुछ दूसरी बातोको लेता हूँ । जिनशासनका सार 1 युगवीर - निवन्धावली " mat प्रवचनमे आगे चलकर समस्त जिनशासनकी वातको छोडकर उसके सारकी बातको लिया गया है और उसके द्वारा यह भाव प्रदर्शित किया गया है कि शुद्धात्मदर्शनके साथ सपूर्ण जिनशासनके दर्शनकी संगति बिठलाना कठिन है । चुनांचे स्वामीजी सारका प्रसग न होते हुए भी स्वयं प्रश्न करते हैं कि "समस्त जैनशासनका सार क्या है ?" और फिर उत्तर देते हैं- "अपने शुद्ध आत्माका अनुभव करना" । जव उक्त सूत्रके अनुसार शुद्धात्मा और जिनशासन एक है तब जिनशासनका सार वही होना चाहिये था जो कि शुद्धात्माका सार है न कि शुद्धात्माका अनुभव करना, परन्तु शुद्धात्माका सार कुछ बतलाया नही गया, अत् जिनशासनका सार जो शुद्धात्माका अनुभवन प्रकट किया है वह विवादापन्न हो जाता है । वास्तवमे देखा जाय तो वह संसारी अशुद्धात्माके कर्तव्यका एक आशिक सार है -- पूरा ,
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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