SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कानजी स्वामी और जिनशासन ४५९ यह भी बतलाया है कि "इस गाथामे आचार्यदेवने जैनदर्शनका मर्म खोलकर रखा है।" यह कथन भी आपका कुछ सगत मालूम नही होता, क्योकि गाथाके मूलरूपको देखते हुए उसमे जैनदर्शन अथवा जिनशासनके मर्मको खोलकर रखने-जैसी कोई बात प्रतीत नही होती। जिनशासनका लक्षण या स्वरूप तक भी उसमे दिया हुआ नही है। यदि दिया हुआ होता तो दूसरी शकाका विपयभूत वह प्रश्न ही पैदा न होता कि 'उस जिनशासनका क्या रूप है जिसे उस दृष्टाके द्वारा पूर्णतः देखा जाता है ?" गाथामे सारे जिनशासनको देखने मात्रका उल्लेख है-उसे सार या सक्षेपादिके रूपमे देखनेकी भी कोई बात नहीं है। सारा जिनशासन अथवा जिनप्रवचन द्वादशाग-जिनवाणीके विशालरूपको लिये हुए है, उसे शुद्धात्मदर्शीक द्वारा-शुद्धात्माके द्वारा नहीकैसे देखा जाता है, किस दृष्टि या किन साधनोसे देखा जाता है, साक्षातरूपमे देखा जाता है या असाक्षात्रूपमे और आत्माके उन पाँच विशेषणोका जिनशासनको पूर्ण रूपमे देखनेके साथ क्या सम्बन्ध है अथवा वे कैसे उसे देखनेमे सहायक होते हैं, ये सव बाते गाथामे जैनदर्शनके मर्मकी तरह रहस्यरूपमे स्थित हैं। उनमेसे किसीको भी आचार्य श्रीकुन्दकुन्दने गाथामें खोलकर नही रक्खा है। जैनदर्शन अथवा जिनशासनके मर्मको खोलकर बतानेका कुछ प्रयत्न कानजीस्वामीने अपने प्रवचनमे जरूर किया है; परन्तु वे उसे यथार्थरूपमे खोलकर बता नही सके.भले ही आत्मधर्मके सम्पादक उक्त प्रवचनको उद्धृत करते हुए यह लिखते हो कि 'उस ( १५ वी गाथा ) मे मरा हआ जैनशासनका अतिशय महत्वपूर्ण रहस्य पूज्य स्वामीजीने इस प्रवचनमे स्पष्ट किया है ( खोलकर- रखा है )।' यह बात आगे चलकर पाठकोको स्वतः मालूम पड़ जायगी। यहाँ पर मैं सिर्फ इतना ही
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy