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________________ ३८० युगवीर-निबन्धावली है । उस प्रकारकी जातिवाले म्लेच्छोके दीक्षा ग्रहणकी योग्यताका ( आगममे ) प्रतिषेध नही है-इससे भी उन म्लेच्छभूमिज मनुष्योके सकलसयम-ग्रहणकी सभावना सिद्ध है जिसका प्रतिषेध नही होता उसकी सभावनाको स्वीकार करना न्यायसगत है।।' यहाँ पर मैं इतना और भी बतला देना चाहता हूँ कि श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती जयधवलकी रचनाके बहुत बाद हुए है--जयधवल शक सख्या ७५६ मे बनकर समाप्त हुआ है और नेमिचन्द्राचार्य गोम्मटस्वामीकी मूर्तिका निर्माण करानेवाले तथा शक सवत् ६०० मे महापुराणको बनाकर समाप्त करनेवाले श्रीचामुण्डरायके समयमे हुए और उन्होने शक संख्या ६०० के बाद ही चामुडरायकी प्रार्थनादिको लेकर जयधवलादि ग्रथो परसे गोम्मटसारादि ग्रथोकी रचना की है। लब्धिसार ग्रन्थ भी चामुण्डरायके प्रश्नको लेकर जयधवल परसे सारसग्रह करके रचा गया है, जैसा कि टीकाकार केशववर्णीके निम्न प्रस्तावना-वाक्यसे प्रकट है - ___ "श्रीमान्नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती सम्यक्त्वचूडामणिप्रभृतिगुणनासावित-चामुण्डरायप्रश्नानुरूपेण कषायप्रभृतस्य जयधवलाख्यद्वितीयसिद्धान्तस्य पंचदशानां महाधिकाराणां मध्ये पश्चिमस्कंधाख्यस्य पंचदशस्यार्थ संगृह्य लब्धिसारनामधेयं शास्त्रं प्रारममाणो भगवत्पंचपरमेष्ठिस्तव-प्रणामपूर्विका कर्तव्यप्रतिज्ञां विधत्ते।" जयधवलपरसे जो चार चूर्णिसूत्र ऊपर (न० २, ४ मे) उद्धृत किये गये हैं उन्हे तथा उनकी टीकाके आशयको लेकर ही नेमिचन्द्राचार्यने उक्त गाथा न० १६५ की रचना की है। चूर्णिसूत्रोमें कर्मभूमिक और अकर्मभूमिक शब्दोका प्रयोग था,
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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