SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गोत्रकर्मपर शास्त्रीजीका उत्तर-लेख ३७५ जघन्य सयमलब्धिस्थान-अनन्तगुणा है। किससे ? पूर्वमें कहे हुए आर्यखडज-मनुष्यके जघन्य-सयमस्थानसे, क्योकि उससे असख्येय लोकमात्र षट् स्थान ऊपर जाकर इस लब्धिस्थानकी उत्पत्ति होती है । 'अकर्मभूमिक' किसे कहते हैं ? भरत, ऐरावत और विदेहक्षेत्रोमे 'विनीत' नामके मध्यमखण्ड ( आर्यखण्ड ) को छोडकर शेष पाँच खण्डोका विनिवासी ( कदीमी बाशिन्दा) मनुष्य यहाँ 'अकर्मभूमिक' इस नामसे विवक्षित है, क्योकि उन पांच खंडोमें धर्मकर्मकी प्रवृत्तियाँ असभव होनेके कारण उस अकर्मभूमिक-भावकी उत्पत्ति होती है।' ___'यदि ऐसा है-उन पाँच खण्डोमे ( वहाँके निवासियोमे) धर्म-कर्मकी प्रवृत्तियाँ असभव है-तो फिर वहाँ ( उन पांच खडोके निवासियोमे ) सयम-ग्रहण कैसे सभव हो सकता है ? इस प्रकारकी शका नहीं करनी चाहिये, क्योकि दिग्विजयार्थी चक्रवर्तीकी सेनाके साथ जो म्लेच्छ राजा मध्यमखड (आर्यखड) को आते हैं और वहाँ चक्रवर्ती आदिके साथ वैवाहिक सम्बन्धको प्राप्त होते हैं उनके सकलसयम-ग्रहणमे कोई विरोध नही हैअर्थात् जब म्लेच्छखण्डोके ऐसे म्लेच्छोके सकलसयम-ग्रहणमें किसीको कोई आपत्ति नही, वे उसके पात्र समझे जाते हैं, तब वहाँके दूसरे सजातीय म्लेच्छोंके यहां आने पर उनके सकल सयम-ग्रहणकी पात्रतामे क्या आपत्ति हो सकती है ? कुछ भी नही, इससे शका निर्मूल है। 'अथवा-और प्रकारान्तरसे'-उन म्लेच्छोकी जो कन्याएँ १ 'अथवा' तथा 'वा' शब्द प्रायः एकार्थवाचक हैं और वे 'विकल्प' या 'पक्षान्तर' के अर्थ में ही नहीं, किन्तु 'प्रकारान्तर' तथा 'समुच्चय' के अर्थमे भी आते हैं, जैसा कि निम्न प्रमाणोंसे प्रकट है :
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy