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________________ ३७४ युगवीर-निवन्धावली स्थानोका अल्पवहुत्वरूपसे उल्लेख किया है, जैसा कि उसके निम्न वाक्योसे प्रकट है :-- ___ "अकम्मभूमियस्स पडिवजमाणयस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं (चूर्णिसूत्र) [कुदो? ] पुविवल्लादो असंखेयलोगमेत्तछटाणाणि उवरि गंतूणेदस्स समुप्पत्तीए । को अकम्मभूमिओ णाम? भरहेरावयविदेहेसु विणीतसपिणदमझिमखंडं मोत्तणं सेसपंचखंडविणिवासी मणुओ एत्थ 'अकम्मभूमिओ' त्ति विवक्खिओ। तेसु धम्मकम्मपवुत्तीए असंभवेण तव्भावोववत्तीदो। जइ एवं कुदो तत्थ संजमग्गहणसंभवो? त्ति णासंकणिज। दिसाविजयहिचकवाटिखंधावारेण सह मज्झिमखण्डमागयाणं मिलेच्छरायाणं तत्थ चक्वट्टिआदीहिं सह जादवेवाहियसंबंधाणं संजमपडिवत्तीण विरोहाभावादो। __ अहवा तत्तत्कन्यकानां चक्रवादिपरिणीतानां गर्भपृत्पन्ना मातृपक्षापेक्षया स्वयमकर्मभूमिजा इतीह विवक्षिताः। ततो न किंचिद्विप्रतिषिद्धं । तथाजातीयकानां दीक्षाहत्वे प्रतिषेधाभावादिति। तस्सेवुकस्सयं पडिवजमाणस्स संजमट्ठाणमणंतगुणं (चूर्णिसूत्र ) । कुदो?"१... ये वाक्य उन दोनो वाक्य-समूहोके मध्यमे स्थित है जो ऊपर न० २ मे आर्यखण्डके मनुष्योंके सकलसयमकी पात्रता बतलानेके लिये उद्धृत किये जा चुके हैं। इनका आशय क्रमश: इस प्रकार है -- 'सकलसयमको प्राप्त होनेवाले अकर्मभूमिकके जघन्य सयमस्थान-मिथ्यादृष्टिसे सकलसयमग्रहणके प्रथम समयमे वर्तमान १. इस प्रश्नका उत्तर अपनी कापीमे आराके जैनसिद्धान्तभवनकी प्रतिसे नोट किया हुआ नहीं है और वह प्रायः पूर्वस्थानसे असख्येयलोकमात्र षट् स्थानोंकी सूचनाको लिये हुए ही जान पड़ता है ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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