SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक विलक्षण आरोप ३०७ हुए कितना आवश्यक जान पडता है। परन्तु बैरिष्टर साहब इसे भी "कमची" बतलाते हैं। और इसे उद्धृत करते हुए लिखते हैं - " 'मौलवी साहब' को 'मूल' का शब्द नापसद हुआ। फिर क्या था। तडसे कमची पडी और चटसे निम्न लिखित फुटनोट जोडा गया। " यह है बरिष्टर साहबकी सुसभ्य और गभीर विचारभाषाका एक नमूना ! ऐसी ही गभीर विचारभाषासे सारा लेख भरा हुआ है, जिसके कुछ नमूने पहले भी दिये जा चुके हैं। एक अति सयत भाषामे लिखे हुए विचारपूर्ण सौम्य नोटको 'कमची' की उपमा देना हृदयकी कलुषताको व्यक्त करता है और साथ ही इस बातको सूचित करता है कि आप विचारके द्वारको बन्द करना चाहते हैं । अस्तु, वैरिष्टर साहबने इस नोटकी आलोचनामे व्यगरूपसे छोटेलालजीकी समझकी चर्चा करते हुए और यह बतलाते हुए कि उन्होने भूल की जो "यह न समझे कि 'मूल' मे तनाजा दिगम्बरी-श्वेताम्बरी इब्तदाका ही नही आता है, बल्कि दुनिया भरके और सब किस्मके झगडे भी शामिल हो सकेगे," लिखा है___"अगर छोटेलालजी वकील होते तो भी कुछ बात थी; क्योकि फिर तो वह यह भी कह सकते कि साहब मेरा तो खयाल यह था कि मज़मूनको सिलसिले ताल्लुक ( relevency ) की दृष्टिकोणसे ही पढा जा सकेगा।" __ और इसके द्वारा यह सुझानेकी चेष्टा की है कि उक्त वाक्यमें लेखके सम्बन्धक्रमसे अथवा प्रस्तावानुकूल या प्रकरणानुसार 'मूल' का अर्थ दिगम्बरमतके श्वेताम्बरमतसे पहले ( प्राचीन )
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy