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________________ २२४ युगवीर-निवन्धावली समझे 'पात्रकेसरी स्तोत्र' के कुछ श्लोकोकी दुहाई दी गई है। हाँ, एक बात नोट किये जाने योग्य जरूर है और वह यह कि शास्त्रीजी जैन-शास्त्रोके वाक्योको छापनेके विरोधी थे, इसीसे उन्होने अपने एक लेखमे शास्त्रीय प्रमाणोको न देते हुए लिखा था कि-"आर्प-वाक्य होनेके कारण मैं यहॉपर शास्त्रीय प्रमाण उद्धृत करनेके लिये असमर्थ हूँ। जिन्हे जाननेकी इच्छा हो उन्हे मैं सहर्ष बतला सकता हूँ या लिखकर भेज सकता हूँ।" परन्तु इस लेखमे आपने "पात्रकेसरी स्तोत्र" के तीन पद्योको देकर आर्षवाक्यो अथवा शास्त्रीय प्रमाणोको उद्धृत किया है और इससे यह स्पष्ट जाना जाता है कि अब आपको शास्त्र-वाक्योके न छपाने सम्बन्धी अपनी पिछली भूल मालूम पड़ गई है अथवा आपके सिरपरसे वह अकुश उठ गया है जिसके कारण आप शास्त्रीय प्रमाणोको न छपानेके लिये मजबूर थे। परन्तु कुछ भी हो, इसमे सन्देह नही कि भूल जिस वक्त भी मालूम पड जाय और सुधार ली जाय उसी वक्त अच्छा है और अनुचित अंकुशका उठ जाना सदा ही अभिनन्दनीय होता है । अस्तु । ___ये ही दो लेख है जो मेरे लेखके विरोधमे अभीतक मुझे उपलब्ध हुए हैं। मैं नहीं चाहता था कि ऐसे व्यर्थके नि.सार लेखोपर कुछ लिखा पढी करके अपने उस कीमती वक्तको खराव किया जाय जो दूसरे अधिक उपयोगी किसी स्वतन्त्र लेखके लिखने या उसकी तैयारी करनेमे खर्च होता। परन्तु कुछ मित्रोका आग्रह है कि इन लेखोसे उत्पन्न होनेवाले भ्रमको जरूर दूर कर देना चाहिए, जिससे भोली जनता फिजूलके धोखेमे न पडे । अत नीचे उसीका यत्न किया जाता है। सबसे पहले मैं अपने पाठकोको यह बतला देना चाहता हूँ
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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