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________________ २२५ उपासना-विषयक समाधान कि उस लेखमे मैंने पूजा, भक्ति और आराधना तीनोंको एक 'उपासना' नामसे उल्लेखित करते हुए, यह प्रकट किया था कि-"आजकल हमारी उपासना बहुत कुछ विकृत तथा सदोष हो रही है और इसलिये समाजमे उपासनाके जितने अग और ढग प्रचलित हैं उन सबके गुण-दोषोपर विचार करनेकी बडी जरूरत है।' साथ ही, उपासनाके ढगके सम्बन्धमे यह भी बतलाया था कि- "उपासनाका वही सब ढग उपादेय है जिससे उपासनाके सिद्धान्तमे ---उसके मूल उद्देश्योमे-कुछ भी बाधा न आती हो। उसका कोई एक निर्दिष्ट रूप नही हो सकता।" इसके बाद यह नतीजा निकालते हुए कि "उपासनाके जो विधिविधान आज प्रचलित हैं वे बहुत पहले प्राचीन समयमे भी प्रचलित थे, ऐसा नहीं कहा जा सकता" उनमे देश-कालानुसार होनेवाले परिवर्तनोमेसे कुछका दिग्दर्शन भी कराया गया था, और इसी दिग्दर्शनमे वर्तमान उपासना-विधिके कुछ दोषोका भी उल्लेख किया गया था जैसे कि, नौकरोसे पूजन कराना, मदिरोके निर्माणमे 'लोक-सग्रह' का जो गहरा तत्त्व छिपा हुआ था उसे भुलाकर अपनी-अपनी मान-कपाय, नामवरीकी इच्छा या कुछ सुभीते आदिके खयालसे विना जरूरत भी एक स्थानपर बहुतसे मदिरोका निर्माण करना और उसके द्वारा सघ-शक्तिको बाँट कर उक्त तत्त्वकी उपयोगिता अथवा उसकी यथेष्ट लाभ पहुँचानेकी शक्तिको नष्ट-भ्रष्ट कर देना, मन्दिरोकी छोटी-छोटी मूर्तियोकी समूह-वृद्धिके कारण मूर्तिपरसे परमात्माके ध्यान और चिन्तवनकी वातका प्राय जाते रहना, मूर्तियोकी निर्माण-विधिमे शिथिलता आदिके कारण भद्दी, वेडौल तथा अशास्त्र-सम्मत मूर्तियोका पाया जाना, मदिरोमे उपासनाके उद्देश्योकी सहायक तथा साम्य
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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