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________________ उपासना-विषयक समाधान कुछ समय हुआ "उपासनाका ढग' नामक एक लेख मैंने १६ अगस्त सन् १९२६ के "जैन-जगत" में प्रकाशित कराया था। हालमे उसके विरुद्ध सेठ मोहनलालजी वडजात्याका एक लेख "जैन-जगत" के गताङ्क न० ८ मे प्रकट हुआ है। इस लेखपरसे मुझे यह देखकर खेद हुआ कि, लेख लिखते समय वडजात्याजी अपने उस सद्भावको खो बैठे हैं, जिसकी मैने दण्डविधान-विपयक आपके एक पहले लेखका समाधान करते हुए प्रशंसा की थी। मालूम होता है मेरे लेखको पढकर और उसमे अपने चिर-सस्कारोके विरुद्ध कोई वात देखकर आप एकदम क्षोभमे आ गये हैं और उसी क्षोभकी हालतमे आपके लेखका अवतार हुआ है। इसीसे उसमे प्राय अविचारिता और कुछ उद्धततां पाई जाती है—वह किसी विचारक दृष्टि अथवा निर्णयबुद्धिसे लिखा हुआ मालूम नही होता-और यही वजह है कि वह व्यक्तिगत आक्षेपोको भी लिये हुए है-उसमे लेखककी मशा और नीयत आदिपर अनुचित आक्षेप किये गए हैं, जिनको सम्पादक "जैन जगत" ने भी महसूस किया है और इसीसे उन्हे ऐसी लेख-प्रणालीके विरुद्ध एक नोट भी साथमे देना पड़ा। दूसरा विरोधी लेख "खण्डेलवाल जैन हितेच्छु" के २ री सितम्बर १९२६ वाले अङ्कमें प्रकट हुआ है। यह छोटासा लेख पंडित बनारसीदासजी शास्त्रीका लिखा हुआ है और बहुत ही साधारण है। इसमे प्राय ऐसी कोई विशेष बात नही, जो वडेजात्याजीवाले लेखमे न आ गई हो। दोनोमे ही बिना
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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